कर्नाटक विधानसभा में कुल 222 विधायक हैं। 117 विधायक जेडीएस-कांग्रेस के पास हैं। भाजपा के पास 104 और 1 निर्दलीय। मतलब राज्यपाल साहब को भी पता है कि भाजपा को बहुमत पूरा करने के लिए कांग्रेस-जेडीएस के फाइव स्टार रिसॉर्ट में सेंधमारी करनी पड़ेगी। और यह तो सबको पता है कि सेंधमारी के लिए पकौड़ा और चाय से बात नहीं बनेगी। फिर भी वुजुभाई वाला को लगा कि भाजपा को ही सरकार बनाने के लिए बुलाना कुर्सी (सॉरी) मिट्टी का कर्ज चुकाने के लिए जरूरी है।
कल रात किसी ने कहा राज्यपाल पद की अपनी प्रतिष्ठा है। उसे इस मामले में कोर्ट में नहीं घसीटना चाहिए। जनादेश की छाती पर लोकशाही का बाजार लगा डालने वाले लोगों की प्रतिष्ठा लोकतान्त्रिक देश का नागरिक होने की मजबूरी है तो मेरी नागरिकता का इस्तीफा ले लीजिए। ऐसे ही लोग राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश और सेना जैसे प्रतिष्ठानों की प्रतिष्ठा को लेकर इतने भावुक होते हैं कि उन्हें हर तरह के सवालों के दायरे से बाहर कर देते हैं। इनकी प्रतिष्ठा का ख्याल हमें ही क्यों हो? उन्हें खुद कब अपने पद की महत्ता और गरिमा का ख्याल होगा!
खैर, सरकार तो कांग्रेस-जेडीएस का बनना भी अनैतिक है। कि यह जनादेश गठबंधन को तो नहीं मिला। कुर्सी के लिये हाथ मिलाने वाले लोग विश्वसनीय होंगे, इस पर विश्वास करना मुश्किल है। लेकिन फिर भी, इनका सरकार बना लेना कम अनैतिक है। यह उन इरादों पर कड़ा प्रहार होगा जो इस देश में लगातार हर अनैतिक काम खुलेआम करने की बदतमीजी दिखा रहे हैं। उनकी कार्यशैली में संविधान की खोल भर है, आत्मा नहीं है। अगर ऐसा नहीं होता तो ये लोग गोआ से लेकर सिक्किम तक आंकड़ों की जालसाजी कर सत्ता-लोलुपता की बेशर्म राजनीति नहीं करते।
वैसे भी अब राजनीति में नैतिकता के नाम पर 6 मात्राओं वाले चार अक्षरों के अलावा कुछ भी नहीं बचा है। अब जब तड़ीपार लोग पार्टी अध्यक्ष बनेंगे तो इससे अलग आप क्या ही उम्मीद कर सकते हैं। दया उन पर आती है जो ऐसे लोगों की जीत को अपनी जीत समझकर खुश होते हैं। इस बात को जानकर भी या अंजान होकर भी कि अगर वो वोटर हैं तो असल में यह उनकी हार है। इस हार के शिकार वो आज नहीं हैं तो कल होंगे। अगर ऐसे ही इस प्रवृत्ति को अपने समर्थन की खाद देते रहे तो..