Wednesday, 19 December 2018

मनीष पोसवाल की कविताः सड़कें धरती की नसें हैं


एक सड़क सही मायनों में
कभी नहीं चलती, आगे बढ़ती।
और कमाल तो ये है कि
ना ही कभी रुकती, खत्म होती।
बस पगडंडियों, दगड़ों और बटियाओ में बंट जाती है,
बंटवारा कर देती है बसवाटों का,
खेतों का, पहाड़ों का ,मैदानों का।
सड़क नहीं खिसकती बिलांद भर भी,
सड़क नहीं सरकती सुई बराबर भी,
दुनिया की तमाम सड़कें
धरती की नसें हैं,
जो जिंदा रख रही हैं उसे,
और इन नसों में दौड रहे हैं हम।
नदी भी सड़कें हैं,
बस वहाँ बहता है पानी
आदमी की जगह।
सड़कें कहीं नहीं आ रही-जा रही,
वो तो हम हैं जो निकले हैं चिरयात्रा पर
जो मरकर ही खत्म होगी।

मनीष पोसवाल
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