लखनऊ में नक्षत्रपति अकेले हैं। गांव में होते तो अपने सभासदों और मंत्रियों के साथ दिखते। सप्तर्षि गुरुओं की उपस्थिति से राज्यसभा गंभीर दिखाई पड़ती। नीरव निशीथ के वातावरण की कालिमा और अपनी शुभ्र ज्योत्सना के विरोधाभासी सम्मेल में पूर्णेन्दु अद्भुत चमक रहे होते। अद्भुत आभा होती लेकिन यहाँ आकाश में अकेले हैं। धरती पर रहने वाले लोगों की अँधेरे से लड़ाई ऐसी क्रूरतम और अहंकारी स्थिति में है कि उन्होंने कृत्रिम उजालों से अपने उजले सेनापति की आभा का भी हरण कर लिया है।
गर्दन ऊपर उठाइये तो दिख जाते हैं। पहले उनकी ज्योति का गुरुत्व अपने आकर्षण से हमारी दृष्टि को खींच लेता था। अब वह अकेले पड़ गए हैं। उनकी नक्षत्र रानियां भी आज उनके साथ नहीं। नितांत अकेले। शरद की पुण्य पूर्णिमा पर एकाकी शशांक। क्या दुखी होंगे? निराश? उदास? लगता तो नहीं। या हो भी सकते हैं। याद कर रहे हों अपने संगियों को। थोड़े से मलिन हो गए हैं अपनी कांति में।
शरद के शशि अश्विनीकुमारों के क्वार माह को विदा करते हैं। क्वार के कुमार देव वैद्य हैं। बताया जाता है शरद पूर्णिमा को चंद्रमा से अमृत बरसता है। देव वैद्य सौंपकर जाते होंगे यह जिम्मेदारी। चाँद को ही क्यों? चांद को इसलिए कि उन्हें भरोसा है। विश्वास है कि चन्द्रमा के यहाँ निष्पक्षता है। उनके यहाँ पक्षपात नहीं है इसलिए सुधापात होगा तो सबके यहाँ बराबर होगा।
नक्षत्राधीश की नजर में कोई भेद नहीं। सब बराबर। पूर्ण साम्यवाद है। वह चांदनी के रथ पर सवार धरती पर उतरते हैं तो सबकी चौखट पर जाते हैं। बिना वर्गभेद के। बिना जातिभेद के। बिना धर्मभेद के। अश्विनीकुमारों को इसलिए ही चंद्रमा पर भरोसा हुआ। सुधा वितरण की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई। शरत् चंद्र को।
श्वेतिमा का अकेलेपन से गहरा नाता है। सभी रंगों से अलग रहने की प्रवृत्ति। हम भी तो बचाते हैं श्वेत वस्त्रों को। श्वेत आचरण को। श्वेत पृष्ठों को कि कहीं किसी ग़लत रंग की संगत न मिल जाए। भद्दा हो जाएगा। बहुत चुनकर-सोच समझकर कोई ऐसा रंग चुनते हैं कि श्वेत खिल उठे। इस चयन की प्रक्रिया में सफलता आसान नहीं होती। दीर्घ अवधि अकेलेपन की होती है। एकांत की होती है। श्वेत का समुच्चय भी बहुत विरल है। शरद इसी श्वेत का तो उत्सव है। वर्षा के बाद कृष्ण मेघ के धवल होने का मौसम। नारंगी डंठल वाली शेफाली के खिलने की ऋतु। श्रीकृष्ण के महारास का पर्व।
शरद पूर्णिमा जीवन की पूर्णिमा का प्रतीक प्रतिनिधि है। भारत में छः ऋतुएं होती हैं। वसंत को ऋतुराज कहा गया और वर्षा को रानी। शरद के हिस्से माँ की भूमिका आई। दुलार की, स्नेह की, मखमली ममता की जिम्मेदारी। माँ के स्नेह में, आशीष में अमृत है। अमरता की आशा है। अमरता का वरदान है, जो माँ के हृदय में अपने संतानों के लिए स्वतः प्रस्फुटित होती है। इसलिए शरद माँ है। ऋतु माँ।
वैसे, सिर्फ पूर्णिमा नहीं, समूचा शरद ही एक शुभाकांक्षा है। हमारी प्राचीन संस्कृति का लोकप्रिय, महत्वपूर्ण और विशिष्ट शुभाशीष भी तो है-
!! जीवेम शरदः शतम् !!
【13/10/2019, विराम खंड, लखनऊ】
【13/10/2019, विराम खंड, लखनऊ】
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