दंगों में सबसे ज्यादा खतरनाक क्या होता है?
दुकानों का लुट जाना, जल जाना?
या घरों का लुट जाना, जल जाना?
या बाजारों, गलियों, मोहल्लों की रौनक तबाह हो जाना?
क्या होता है सबसे ज्यादा खतरनाक?
इनमें से कौन सी भीड़ सबसे ज्यादा खतरनाक होती है?
नारा-ए-तकबीर का कौल देने वाली,
या फिर जय श्री राम का उदघोष करने वाली?
टोपी-तलवार वाली या फिर तिलक-त्रिशूल वाली?
किस भीड़ का शोर दहला देता है दिलों को सबसे ज्यादा?
क्या होता है सबसे ज्यादा खतरनाक?
इनमें से क्या होता है सबसे ज्यादा खतरनाक?
ईंट, पत्थर, दियासलाई, बंदूक से निकलने वाली गोली,
नंगी तलवार, चाकू, तेज़ाब, रॉड, लाठी, डंडा या फिर बेसबॉल-क्रिकेट का बल्ला?
दंगे में किसी को मारने के लिए कौन सा हथियार सबसे कारगर होता है?
क्या होता है सबसे ज्यादा खतरनाक?
क्या होता है सबसे ज्यादा खतरनाक?
मंदिर में रखी मूर्तियों को खंडित करना,
या मस्जिद की मीनार पर भगवा ध्वज लहरा देना?
मस्जिद या मंदिर... कहां लगी आग की लपटें सबसे ज्यादा डरावनी दिखती हैं?
क्या होता है सबसे ज्यादा खतरनाक?
कौन सी मौत पैदा करती है दिलों में सबसे ज्यादा खौफ़?
चाकुओं से गोदकर, पत्थरों से कुचलकर या लाठी-डंडों से पीटकर?
गोली मारकर या फिर जिंदा जलाकर?
क्या दंगे में गला दबाकर भी मारा जा सकता है किसी को?
दंगाइयों के लिए मारने का बर्बर से बर्बर और पसंदीदा तरीका कौन सा है?
क्या होता है सबसे ज्यादा खतरनाक?
खौफनाक मंजर कौन सा होता है?
आग की लपटों के बढ़ते कद के बीच जलते लोग या गरदनों से निकले गरम खून के फ़व्वारे?
या गंदे नालों में बहती लाशें जब काले-गंदे पानी को कर देती हैं लाल और बढ़ा देती है बदबू?
क्या है सबसे ज्यादा खौफ़नाक?
लाठी-डंडों से मार दिए गए आदमी की लाश पर डंडे बरसाते रहना,
या चाकुओं से गोदकर जिस्म में इतने सुराख़ कर देना कि गिनना मुश्किल हो जाए?
पत्थर मार-मारकर किसी का सिर कुचल देना या पेट से अंतड़ियां बाहर खींच लेना?
क्या होता है सबसे ज्यादा खतरनाक?
पता है दंगे में सबसे ज्यादा खतरनाक क्या होता है?
सबसे ज्यादा खतरनाक होता है नफ़रत की आग में आने वाली नस्लों का झुलस जाना, जब दो कौम के लोगों के बीच खिंच जाती है लकीर.
जान बचाकर भागे लोगों का मोहल्लों में वापस नहीं लौटना और अपनों को खो देने वालों का बदले की आग में जलते रहना.
जब डर दिल में इतना गहरा उतर आए कि मोहल्ले में खेलते बच्चों का मचाया शोर, उठा दे दिमाग में सवाल कि कहीं फसाद शुरू तो नहीं हो गया?
जब चाय के खोखे पर लोग हंसी-ठिठोली भूलकर दूसरी कौम को देने लगे गालियां, वही होता है सबसे ज्यादा खतरनाक.
जब मोहल्लों में जोर आज़माइश, छिटपुट बदमाशी करने वाले लौंडे, बंद कर देते हैं अपनी शरारतें इस डर में कि कहीं ये दंगे में न बदल जाए, वह डर सबसे ज्यादा खतरनाक होता है.
जब दिमाग में इस कदर डर बैठ जाए कि दो मजहब के लोगों के बीच हुई बाइक की टक्कर से भी दंगा भड़क सकता है, वही डर होता है सबसे ज्यादा खतरनाक.
दंगों की खबरों के बीच जब रात को सोते हुए गली में हुई चोरी की आहट सुनकर डर जाएं लोग और सोंचे कहीं दंगाई मोहल्ले में दाखिल तो नहीं हो गए, वह डर होता है सबसे ज्यादा खतरनाक.
हिंदुओं का हिंदू बस्तियों और मुसलमानों को मुसलमान बस्तियों में ही रहने का ख्याल आना, भरोसा नहीं कर पाना, शक करते रहना बहुत खतरनाक होता है.
जिसने दंगे में खो दिया किसी अपने को उसका आने वाले वक्त में किसी दंगे में दंगाई बन जाना होता है सबसे ज्यादा खतरनाक.
और जब दंगे में मारे गए दूसरी कौम के लोगों की मौत पर मातम की जगह हम महसूस करने लगते हैं गर्व, वो होता है सबसे ज्यादा खतरनाक.
दंगा तो कुछ दिन, कुछ घंटे, कुछ मिनट चलता है लेकिन असर आने वाली कई नस्लों तक रहता है, यही होता है सबसे ज्यादा खतरनाक.
तो बोल कफ़्फ़ारा क्या होगा? क्या होगा इसका प्रायश्चित ?
लेकिन नाउम्मीदी कुफ्र है...
इन्हीं दंगों में से निकलकर सामने आ जाती हैं कई कहानियां जिनसे बंध जाती है जीने की उम्मीद. उम्मीद की नहीं... अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है.
उम्मीद कायम रहती है... जब पगड़ी के लिए जान दे देने वाला सरदार जिंदर सिंह सिद्धू, अपनी पगड़ी को एक मुसलमान के सिर की दस्तार बना देता है.
उम्मीद कायम रहती है... जब कोई संजीव कुमार किसी मुजीबुर रहमान की जान बचाने के लिए उसे अपने घर में पनाह दे देता है.
उम्मीद कायम रहती है... जब चांदबाग के मुसलमान नौजवान एक मंदिर को बचाने के लिए उसकी ढाल बन जाते हैं.
उम्मीद कायम रहती है... जब किसी मस्जिद की मीनार पर लगाए भगवा को कोई रवि वापस उतार लेता है.
उम्मीद कायम रहती है... जब किसी जली हुई मज़ार के बाहर हाथ जोड़कर खड़ी हिंदू औरतें प्रार्थना करती हैं.
उम्मीद कायम रहती है... जब कोई प्रेमकांत भगेल अपने मुसलमान पड़ोसियों को आग से बचाने के लिए खुद आग में कूद जाता है.
उम्मीद कायम रहती है... जब दंगे में अपनों को खो चुके लोग बदला नहीं इंसाफ मांगते हैं.
उम्मीद कायम रहती है... जब बढ़ती नफरतों के बीच कोई पुनीत किसी नदीम से पूछता है- तेरे घर वाले मेरे बारे में कुछ निगेटिव तो नहीं सोच रहे?
और उम्मीद बरकरार रहती है... जब नदीम जवाब देता है- अब्बू कह रहे थे कुछ होता है तो पुनीत के घर चले जाना.
और आखिर में सबसे ज्यादा उम्मीद उस प्रियांशी नाम की बच्ची से बंधती है... जो अपने पड़ोसी मुसलमान के घर छोड़कर चले जाने पर रोती है, सही से खाना नहीं खा पाती और उनके जल्द लौटने की दुआ मांगती है.
प्रियांशी से सबसे ज्यादा उम्मीद इसीलिए है क्योंकि वह आने वाली नस्ल की है और आने वाली नस्लें ऐसी हों तो उम्मीद कायम रहती हैं...
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