चीजें कहीं से भी देखी जा सकती हैं. बहुत गहराई से भी और बहुत सतह से भी. सतह से विराट कोहली को देखता हूं तो मनुष्य होने की तमाम सतरंगी संभावनाओं का एक दृष्टांत नजर आता है. एक लक्ष्य साधने के बाद कैसे जीवन के तमाम आकर्षक, आवश्यक और सुंदर प्राप्य उसके जरिए ही आसानी से उपलब्ध होने लगते हैं.
ऐसा नहीं है कि इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने कोई ऐसा काम किया होगा जो साधारण मनुष्य की करणीयता के दायरे से बाहर हो. वह एक व्यक्ति के तौर पर प्रयास और श्रम का चरम हैं और मनुष्यता की व्यक्तिगत क्षमता की पूर्णशील सीमा के पास पहुंचे गिने-चुने लोगों में से एक हैं.
हमने उनके प्रयास को देखा है. उन प्रयासों को भी जिनमें वो असफल रहे. उनको भी जिनमें वह बुरी तरह असफल रहे. उन कोशिशों को भी जिनमें वह संघर्षरत रहे और फिर वह भी देखा जब वह फीनिक्स पक्षी की तरह विराट कोहली अपनी ही राख से बार-बार पैदा होते रहे.
अपने पूरे करियर में कोहली हमेशा चर्चा में रहे क्योंकि वह हमेशा क्रिकेट के दर्शकों की उम्मीदों के रथ पर सवार रहे. लोगों की नजरें उन पर रहीं और कोहली की नजरें रहीं अपनी कला पर. अपने कौशल पर. जब वह नए-नए टीम में आए तो उनकी आक्रामता की जमकर चर्चा हुई. वह जरा-जरा सी उपलब्धि पर ज्यादा-ज्यादा जश्न मनाते. विरोधियों को चिढ़ाते. साथी खिलाड़ियों पर चिढ़ते लेकिन अपने खेल में ऐसा जबर्दस्त होते कि तमाम नापसंद किए जाने वाले बर्ताव के बाद भी उन पर सवाल उठाने की जरूरत अक्सर मंद पड़ जाती.
शतकों पर शतक लगाए. रन बरसाए. खेल में ऐसी क्लास विकसित की देखने वाला देखता रह जाए. लोग बार-बार उनके व्यक्ति पर जाते लेकिन मैं बार-बार उनके क्रिकेटर पर अटक जाता. कैसा जुझारू खिलाड़ी है, जो जीत रहा होता है तो जीत का गर्व उसके चेहरे पर नजर आता है. जब हार रहा होता है तो हार का दुख पानी की तरह उसके व्यक्तित्व के आग को ठंडा कर देता है. जब संघर्ष करता है तो एक अदद साथ और भरोसे की वांछना लिए उसकी आंखों में अफसोस के ओस से ढंका आत्मविश्वास का धुंधला सूर्य चमकता दिखता है.
फिर जब तमाम मुश्किलों से उभरकर आता है और जीतता है तो खुशी में बच्चे की हंसी हो जाता है. मुझे महसूस होता है कि उसकी इस खुशी में परम आनंद के वो तत्व हैं जो किसी ऋषि या भिक्खु को लंबी साधना के बाद प्राप्त होते हैं. बच्चों का आनंद दुनियादारी के मैल से मिलने के अभाव का होता है. यानी उस आत्मा में संसार का प्रदूषण अभी मिला नहीं है लेकिन विराट की साधना के बाद यह जो आनंद उनमें दिखता है वह इस प्रदूषण के अनारंभिकता की स्वच्छता नहीं है. यह अप्रदूषीकरण की कठोर साधना के बाद मिला आनंद है, जिसमें किसी अभाव की सालना नहीं है. विराट के लिए क्रिकेट उसकी साधना का जरिया है. वह इसी के जरिए मनुष्य जीवन के लक्ष्यों का रास्ता तय कर रहा है.
विराट के जीत का जश्न मनाने का तरीका एकदम अलहदा होता है. उस पर उनकी वरिष्ठता का कोई असर नहीं होता. न तो वह किसी भी तरह की सामाजिक प्रतिक्रिया विशेषकर उलाहना की परवाह करते हैं. उनको जश्न मनाते देखकर लगता है कि इस आनंद को पाना कितना कठिन काम है लेकिन यह जितना सुंदर है, उसके लिए किसी भी कठिनता के पर्वत को लांघ दिया जाना चाहिए.
इसलिए विराट सिर्फ क्रिकेट प्रेमियों के लिए नहीं बल्कि मनुष्य सभ्यता के लिए प्रेरक उदाहरण हैं. आदर्श हैं कि जीवन जीया जाना है तो ऐसे जीया जाना है.
जीवन पानी से आरंभ होता है. किसी भी चीज के तत्व तक बढ़ेंगे तो पानी पर ही पहुंचेंगे. पानी मनुष्य देह के मौलिक तत्वों में से भी एक है. मनुष्य की अमरता ये है कि वह जीते जी 5 मूलभूत तत्वों की प्रकृति को आत्मसात कर ले. नहीं तो मृत्यु जब ये काम आपसे करवाती है तो आपका नामोनिशान तक नहीं छोड़ती. आपको जीते जी पानी की तरह पूर्ण प्रत्यास्थ होना चाहिए कि कंकड़-पत्थर चाहे जितना आपको विकृत करने की कोशिश करें. आप पानी की सतह की तरह बार-बार समतल हो जाएं.
आप संभावनाओं पर सोचें तो आपके सोच की पहुंच आकाश की तरह थोड़ा और है थोड़ा और है होते हुए असीम हो जाए. अपनी हिमता को पिघलाए रखने भर की आग को हमेशा जलाए रखें. हवा बांधे नहीं बंधती. तो ऐसी उन्मुक्तता रहे कि जीवन में हवा तत्व किसी अन्य तत्व से कम न हो जाए. सबसे जरूरी चीज कि पुलई जितनी आकाश तक चली जाए लेकिन उसकी हरियाली और उसकी वृद्धि की वजह मूल है, यह सदैव याद रहे.
विराट कोहली की जिजीविषा में, उनके जुनून में मनुष्य के पांच मौलिक तत्वों की प्रकृति दिखती है. इसलिए जीवन उन्हें आनंद देता है और शाश्वत मृत्यु भी उन्हें ऐसा सम्मान देगी, जिसके वह हकदार हैं.
(आरसीबी के आईपीएल जीतने के बाद विराट कोहली को बच्चों जैसा पुलक प्रकट करते देखने के बाद)
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