'शंकर' को हम किसलिए पूजें!
इसलिए कि शंकर के पास तीसरी आँख है,जिसके खुलने से सारा संसार मुट्ठी भर राख में तब्दील हो सकता है!इसलिए कि महाकाल के प्रसन्न रहने से मृत्यु (एक शाश्वत सत्य) आस-पास नहीं फटक सकती!इसलिए कि शिव विनाशक हैं,उन्हें अप्रसन्न नहीं रखना चाहिए!पूजन के इन विभिन्न कारणों से आपको एक भय की गन्ध नहीं आ रही।और 'डर' से उत्पन्न 'भक्ति' दासता या गुलामी या परतंत्रता की प्रतीक नहीं है!
शिव की विभिन्न स्थितियों के अलग अलग सम्बोधन हैं।इसलिए Samar अगर कहते हैं कि 'महाकाल' को नही 'प्रेम' को पूजे,तो उसका ये कतई अर्थ नहीं कि यह शंकर की पूजा के खिलाफ ज़ारी कोई फतवा है।
हमारे गुरूजी बताया करते हैं कि 'शंकर के गले में सर्प की माला है,और कार्तिकेय का वाहन मोर है,सर्प मोर का भोजन है।शंकर का वाहन बैल है,पत्नी दुर्गा का वाहन शेर है,बैल शेर का ग्रास है।शंकर के कण्ठ में ज़हर है,शीश पर चन्द्रमा है,चन्द्रमा में पीयूष है,अमृत है,सभी परिवार में साथ हैं।इसलिए जब शेर-बैल,मोर-सांप,अमृत-ज़हर एक साथ एक परिवार का हिस्सा हों,तो ऐसी संभावना को वास्तविकता का जो अकार देता है वो 'शंकर' है।
हम इस शंकर को क्यों न पूजें!प्रेम के पावन प्रतीक 'शिव'।
हम उस शंकर को क्यों न पूजे जिसने सारे संसार को हलाहल के विध्वंशकारी प्रभाव से बचाकर संसार को अभयदान दिया था,बजाय इसके कि तांडव करने वाले विध्वंशक शिव को।जब शिव को पूजने के लिए हमारे पास इतने सारे ऐसे कारण हैं जिनसे किसी भय की,किसी मजबूरी की,किसी परतंत्रता की गन्ध न आती हो,बल्कि प्रेम की,परोपकार की,निर्भयता की,और पवित्रता की महक आती हो,तो फिर हम ऐसा कारण क्यों नहीं चुनते,जो शिव को भी पसन्द है।निःस्वार्थ प्रेम और भक्ति का!शिव से विभक्त न होने की 'भक्ति' और शिवमय हो जाने वाले 'प्रेम' का।
ख़ैर!महाशिवरात्रि की असंख्य बधाईयाँ😊
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