नॉएडा सेक्टर 20, एक मंदिर के ठीक सामने एक छोटा सा पार्क है। बगल में एक कॉलोनी है, तो साफ़ है कि कॉलोनी वालों के लिए ही ये छोटी सी जगह निश्चित की गयी होगी। दिन भर रूम में अकेले पड़े रहकर बोर होने के बाद पाँव अनायास ही इस ओर बढ़े चले आए। आया तो मंदिर देखकर था, लेकिन मंदिर में गया ही नहीं।यहीं आकर बैठा हूँ शाम से। जब बात करने के लिए कोई न हो तो आस पास की हलचल से ही वार्तालाप करना मजबूरी हो जाती है।
यहाँ उस हलचल के नाम पर सिर्फ दो कोनें गुलज़ार हैं। मेरे सामने एक वृत्त की शक्ल में तकरीबन 6-7 लोग ताश खेल रहे हैं, बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से। मेरे पीछे तकरीबन 15-16 बच्चे एक छोटा सा हेलीकॉप्टर उड़ा रहे हैं। उनमें दो किसी संपन्न परिवार के बच्चे हैं। ये हेलीकॉप्टर उन्हीं का है। बाकी उस हेलीकॉप्टर के उड़ने पर उसके नीचे खड़े होकर उसे मुंह बाए देख रहे हैं। बच्चों के परिवार की आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा उनके वस्त्र और उनके आचरण और उनकी भाषा भी देखकर साफ़ तौर पर लगाया जा सकता है।
एक के हाथ में रिमोट है, दूसरे का हाथ हेलिपैड बना हुआ है, हेलीकॉप्टर बार बार वहीं से उड़ान भर रहा है। नीचे बाकी के सभी बच्चे कौतूहल से उड़ते हेलीकॉप्टर को देख रहे हैं, खुश हो रहे हैं, उनमें एक वह बच्चा भी शामिल है जिसने चलने की कला शायद 1 महीने पहले ही सीखी होगी, मतलब ढाई या तीन साल का रहा होगा। जाने क्या उम्मीद है उन्हें, हेलीकॉप्टर की तरह आकाश छूने की या फिर हेलीकॉप्टर को एक बार छू लेने की। वैसे उनके मन में हीन भावना भी हो सकती है कि मेरे पास भी यह होना चाहिए। शायद आज उनके घर में रोटी और सब्जी के साथ होने वाले डिनर में इस बात पर विमर्श भी हो, जो उनके पिता की ऊंची और तीखी आवाज से खत्म भी हो जाए।
जो भी हो, लेकिन बच्चों ने भरपूर आनंद लिया। उन दो हेलीकॉप्टर के मालिकों के अलावा भी सारे बच्चों ने। उनमें एक नीली बनियान पहने हुए जो बच्चा था, वह शायद हेलीकॉप्टर को लेकर काफी उत्साहित था। उसके नीचे काफी उछल रहा था, बार बार हेलीकॉप्टर को
ही छूने की कोशिश करता हुआ। फिर अचानक हेलीकॉप्टर मालिक बच्चे ने जो स्वास्थ्य में भी उसका तीन गुना था, उसने उसे डाँट दिया - "बार बार हाथ क्यों लगाता है।" फिर क्या था, नीली बनियान वाले बच्चे ने इस खेल से कुछ भुनभुनाते हुए स्वतः विदाई ले ली।
स्वाभिमान, आत्मप्रतिष्ठा, खुद्दारी- ये भौतिक सुविधाओं या केवल संपन्नता के वातावरण में नहीं फलती फूलती हैं, ये इंसान के लहू की आग में पकती हैं, जिससे इंसान की इंसानियत, व्यक्ति का व्यक्तित्व सोने जैसा दमकता है।
यहाँ उस हलचल के नाम पर सिर्फ दो कोनें गुलज़ार हैं। मेरे सामने एक वृत्त की शक्ल में तकरीबन 6-7 लोग ताश खेल रहे हैं, बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से। मेरे पीछे तकरीबन 15-16 बच्चे एक छोटा सा हेलीकॉप्टर उड़ा रहे हैं। उनमें दो किसी संपन्न परिवार के बच्चे हैं। ये हेलीकॉप्टर उन्हीं का है। बाकी उस हेलीकॉप्टर के उड़ने पर उसके नीचे खड़े होकर उसे मुंह बाए देख रहे हैं। बच्चों के परिवार की आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा उनके वस्त्र और उनके आचरण और उनकी भाषा भी देखकर साफ़ तौर पर लगाया जा सकता है।
एक के हाथ में रिमोट है, दूसरे का हाथ हेलिपैड बना हुआ है, हेलीकॉप्टर बार बार वहीं से उड़ान भर रहा है। नीचे बाकी के सभी बच्चे कौतूहल से उड़ते हेलीकॉप्टर को देख रहे हैं, खुश हो रहे हैं, उनमें एक वह बच्चा भी शामिल है जिसने चलने की कला शायद 1 महीने पहले ही सीखी होगी, मतलब ढाई या तीन साल का रहा होगा। जाने क्या उम्मीद है उन्हें, हेलीकॉप्टर की तरह आकाश छूने की या फिर हेलीकॉप्टर को एक बार छू लेने की। वैसे उनके मन में हीन भावना भी हो सकती है कि मेरे पास भी यह होना चाहिए। शायद आज उनके घर में रोटी और सब्जी के साथ होने वाले डिनर में इस बात पर विमर्श भी हो, जो उनके पिता की ऊंची और तीखी आवाज से खत्म भी हो जाए।
जो भी हो, लेकिन बच्चों ने भरपूर आनंद लिया। उन दो हेलीकॉप्टर के मालिकों के अलावा भी सारे बच्चों ने। उनमें एक नीली बनियान पहने हुए जो बच्चा था, वह शायद हेलीकॉप्टर को लेकर काफी उत्साहित था। उसके नीचे काफी उछल रहा था, बार बार हेलीकॉप्टर को
स्वाभिमान, आत्मप्रतिष्ठा, खुद्दारी- ये भौतिक सुविधाओं या केवल संपन्नता के वातावरण में नहीं फलती फूलती हैं, ये इंसान के लहू की आग में पकती हैं, जिससे इंसान की इंसानियत, व्यक्ति का व्यक्तित्व सोने जैसा दमकता है।
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