Sunday, 26 August 2018

रक्षाबंधन प्रेम, सहायता और रक्षा का पर्व है

रक्षाबंधन प्रेम, सहायता और रक्षा का पर्व है। इससे जुड़े अनेक किस्सों से रक्षाबंधन का यही चरित्र उजागर होता है। सिकंदर की पत्नी के भेजे रक्षासूत्र की वजह से पुरू ने सिकंदर की जान बख्श दी और बंदी बना लिए गए। रक्षासूत्र बांधकर लक्ष्मी ने बलि से विष्णु को मांग लिया। रक्षासूत्र भेजकर रानी कर्मावती ने बहादुरशाह के आक्रमण से रक्षा के लिए हुमायूं से सहायता मांगी।

रक्षासूत्र का सबसे अद्भुत प्रसंग महाभारत से है। शिशुपाल वध के दौरान सुदर्शन चक्र के इस्तेमाल से भगवान की अंगुली से खून निकलता देखकर द्रौपदी तुरंत अपने दुकूल का एक किनारा फाड़कर कृष्ण की उंगली पर लपेट देती हैं। इसे भी रक्षासूत्र ही कहा गया। वह दिन भी सावन की पूर्णिमा का दिन था। द्रौपदी कृष्ण की बहन नहीं थीं। सखी थीं। कृष्ण से उन्हें शर्तहीन प्रेम था।

कहा जाता है कि इंद्र की पत्नी ने भी इंद्र की रक्षा के लिए उन्हें तपोबल से उत्पन्न राखी बांधी थी। किसी युद्ध में जाने से पहले। राखी सिर्फ प्रेम का त्योहार है। सिर्फ भाई-बहन के प्रेम का नहीं। किसी से भी प्रेम का। जिसके आभार तले आप दबे हों आप उसे भी राखी बांधकर उऋण होने की कोशिश कर सकते हैं। जिस पर भी आप विश्वास जताना चाहते हों उसकी कलाई पर रक्षासूत्र का बंधन आरोपित कर सकते हैं। जिससे भी सप्रेम सहायता चाहते हों उसे बांध दीजिए राखी। जिसे रक्षा का वचन देना है उसके हाथ पर सूत्र से आश्वासन का हस्ताक्षर कर दीजिए।

पेड़-पौधों को, दोस्तों को, गुरू को, किताबों को, महापुरुषों की मूर्तियों को, ईश्वर की मूर्तियों को, मां-पिता को। जिसको चाहें, रक्षासूत्र बांध दीजिए और प्रतीकों से मुक्त होकर बंध जाइए बंधन में। रक्षाबंधन में। प्रेमबंधन में। आभारबंधन में। आदरबंधन में। सिर्फ प्रतीकों से नहीं, दिल से। 😊

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