◆ जरूरत है कि हम अपनी नागरिकताओं की ओर लौटें
मतदान सामूहिक हिस्सेदारी नहीं है। यह व्यक्तिगत दायित्व है। अपने लिए बेहतर के चुनाव का। इसके आपके अपने मापदंड हों। आपकी प्राथमिकताएं तय करें कि आपके क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कौन बेहतर कर सकता है। किसी को वोट देने का आधार यह न हो कि 'उसकी लहर है' या 'वह जीत रहा है'। ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर लोगों से यह कहते सुना जा सकता है कि जो जीत रहा है उसे वोट देकर अपना वोट खराब करने से बचा जाए। उन्हें यह समझने की जरूरत है कि वोट आपने चाहे हारने वाले को दिया या जीतने वाले को, वह खराब नहीं होता। या तो आप सत्ता चुनते हैं या विपक्ष। महत्वपूर्ण दोनों हैं।
आपका वोट आपकी अभिव्यक्ति है। लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति, जिसमें एक विचार, दृष्टि या नेतृत्व की सार्थकता या असार्थकता पर आप अपने विचार की मुहर लगाते हैं। यह कतई गोपनीय होना चाहिए। परिवार में ही अलग-अलग सदस्यों के मतांतर हों तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन आपको अपने मापदंडों के आधार पर प्रत्याशी चुनने चाहिए। यही तो चुनाव की मूल आत्मा है। अलग-अलग लोगों के मापदंड पर सबसे बेहतर कौन है? सामूहिक सलाह से वोट डालने में एक नुकसान है। उभयनिष्ठ सहमति बनाने के दौरान आपके अपने कई मापदंड हटाने पड़ते हैं। इसलिए अपने स्केल पर प्रत्याशियों को मापिए और फिर मतदान किसे करना है, इसका फैसला लीजिए।
चुनाव प्रचार का अधिकार प्रत्येक प्रत्याशी को संविधान देता है। वह किस तरह से अपना प्रचार करते हैं इसे सेंसर करने के लिए बहुत कसौटियां निर्धारित नहीं हैं। ऐसे में सुप्रचार और कुप्रचार के अंतर को अपने विवेक से समझना भी हमारे लिए चुनौती है। कोरी घोषणाओं से प्रभावित हुए बिना उनके शोध और उनकी व्यवहारिकता को ध्यान में रखकर ही किसी के समर्थन अथवा विरोध का फैसला लेना चाहिए। चुनाव का वक्त केवल नेताओं की परीक्षा का मौसम नहीं होता। यह मतदाताओं के लिए उससे ज्यादा कठिन परीक्षा की घड़ी होती है।
असीमित दल बनाने के संवैधानिक अधिकार ने दलों की गिनती में बेतहाशा वृद्धि की है। जाति-धर्म-विचारधारा-लिंग-समुदाय के आधार पर बने अनेक दल चुनाव के दौरान अपनी दावेदारी पेश करते हैं। हममें से ज्यादातर देशवासियों की राजनैतिक निष्ठाएं पहले से ही निर्धारित हैं। हमारी प्रतिबद्धता घोषित है। हमने समाज को कुछ खांचों में विभाजित कर दिया है। यहां अपने विचारों के आधार पर लोग दलों के निष्ठावान कार्यकर्ता घोषित कर दिए जाते हैं। निष्पक्ष, जनहितकारी और पारदर्शी सरकार के चुनाव के लिए हमें इन पूर्वागर्हों से बाहर निकलना होगा। हमें अपनी नागरिकताओं की ओर लौटना होगा। भाजपाई, कांग्रेसी, सपाई या बसपाई होने से पहले नागरिक जिम्मेदारी के अनुच्छेदों पर दृष्टि डालनी होगी।
नागरिक होंगे तभी अपने देश के लिए नेता चुन पाएंगे। दल का समर्थक होकर हम सिर्फ दल का नेता चुनने की ही योग्यता रखते हैं। एक बात और, राजनैतिक दलों के निर्णयों में हमारी सहभागिता नहीं होनी चाहिए। सरकार बनेगी कैसे? आंकड़े कैसे पूरे होंगे? प्रधानमंत्री कौन बनेगा? जैसी चिंताएं हमारी नहीं हैं। हमारी चिंता है कि हम अपने क्षेत्र से सबसे बेहतर प्रतिनिधि कैसे भेज सकते हैं। अगर हर कोई अपने क्षेत्र से बेहतर प्रतिनिधि भेजता है, कर्मठ सांसद भेजता है तो निश्चित रूप से जो भी सरकार बनेगी वह बेहतर ही होगी। दलों के दलदल में फंसे लोकतंत्र को कुछ ऐसे ही उपायों से उबारा जा सकता है।
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