राम कलियुग में क्रोध के पृष्ठसंगीत के साथ आते हैं। एक वीररस का कृत्रिम और अनावश्यक शोर लेकर श्रीराम का जयघोष होता है। तस्वीरों में राम क्रोध में दिखाए जा रहे हैं। तीर तना हुआ है। जाने किस पर तना हुआ है। राम का धनुष व्यर्थ नहीं तनता। दो बार ऐसा हुआ, जब युद्ध जैसी परिस्थिति नहीं थी और राम की प्रत्यंचा तन गई थी। पहली बार परशुराम ने राम के भगवान होने का परीक्षण करने के लिए उन्हें एक धनुष दिया। बोला, इस पर प्रत्यंचा चढ़ाकर दिखाओ। राम ने चढ़ा दिया। तीर तान दिया और परशुराम से बोले, बताइए। किस पर चलाना है। तान दिया है तो क्षत्रिय होने के नाते धनुष से बाण नहीं उतार सकता। इसे किस पर छोड़ूं। आपके तप से प्राप्त मनगति गामी सिद्धि पर या फिर आपके जीवन के समस्त पुण्यों पर? परशुराम ने दूसरा विकल्प चुना। उनके आग्रह पर राम ने तीर दक्षिण दिशा में छोड़ दिया। दूसरा मौका, समुद्र से राह मांगते समय की है। तब भी राम ने तीर तान दिया था। बाद में समुद्र के आग्रह पर उन्होंने उसे मेरू पर्वत की ओर छोड़ा।
राम व्यर्थ धनुष तानते ही नहीं हैं लेकिन आधुनिक रामभक्तों को बाण का संधान किए राम ही भाते हैं। क्रोधी राम ही पसंद आते हैं। उनके सौम्य चेहरे पर कठोर क्रोध की छाया आधुनिक राम का चित्र है, जबकि राम ऐसे हैं ही नहीं। राम कैसे हैं? राम को कैसे याद किया जा रहा है? रावण का वध करने वाले राम। तड़का, खर-दूषण और कुम्भकर्ण का वध करने वाले राम! क्या राम इतने ही हैं?
द्वापर में दुनिया के सबसे बड़े धनुर्धर को गीतोपदेश देते कृष्ण कहते हैं कि शस्त्रधारियों में मैं राम हूँ। क्या शस्त्र और राम का संयोजन ही सही 'रामत्व' है? क्या राम को इसीलिए याद किया जाए? क्या राम के अलावा किसी ने अन्याय के खिलाफ युद्ध नहीं जीता? क्या किसी ने राक्षसों का संहार नहीं किया? अगर किया तो राम में विशेष क्या है? राम को अलग से क्यों याद रखा जाए? राम से महान त्याग भी हुए हैं? परशुराम ने ही पूरी पृथ्वी गुरु को दान कर दी थी। दधीचि ने तो प्राण दान ही दे दिया था। प्राण छोड़ देने से भी बड़ा दान कुछ हो सकता है क्या? राज्य छोड़ना उसके आगे कहाँ ठहरता है? फिर राम महान क्यों हुए? भगवान क्यों हुए? कृष्ण ने क्यों कहा कि शस्त्रधारियों में मैं राम हूँ?
"संत हृदय नवनीत समाना"
संतों का हृदय मक्खन की तरह मुलायम होता है। संतों के हृदय में राम रहते हैं। राम की शारीरिक कोमलता को तुलसीदास ने मक्खन से भी श्रेष्ठ बताया है। ऐसा कोमलांग सूर्यवंशी और कृष्ण कहते हैं कि शस्त्रधारियों में मैं राम हूँ। राम के हाथ मे शस्त्र होने के मायने क्या हैं?
तीन दिवस तक पन्थ मांगते रघुपति सिंधु किनारे
राम के पास ऐसा शस्त्र है कि पल भर में पूरा समुद्र सुखा दें। दो मिनट में सेना के लिए रास्ता बन जाता। फिर भी राम समुद्र से प्रार्थना करते हैं। तीन दिन तक प्रार्थना करते हैं कि हमे रास्ता दो। समुद्र का कोई उत्तर नहीं मिलता।
"बोले राम सकोप तब, भय बिन होई न प्रीति"
इसके बाद कहते हैं कि भय के बिना प्रीति नहीं है। तब शस्त्र उठाते हैं। राम के शस्त्र उठाने में अधीरता नहीं है। तभी समुद्र के पास अपनी बात रखने की गुंजाइश बचती है। राम का शस्त्र चलता भी है तो पर्वत के अहंकार पर। अहंकार के पर्वत को खंड-खंड कर राम समन्वय और सामंजस्य का पुल बनवाते हैं।
रावण से युद्ध से पहले अंगद को भेजते हैं कि उसे समझाओ कि युद्ध कोई विकल्प नहीं है। सिर्फ विनाश का रास्ता है। लाखों लोग मारे जाएंगे। रावण नहीं मानता। राम के पास ऐसे-ऐसे दिव्यास्त्र थे, जिनका मुकाबला तीन लोक में कोई नहीं कर सकता था। राम फिर भी शांति चाहते थे। राम फिर भी करुणा करते हैं कि रावण को बोलो, युद्ध मे लंका की प्रजा को बहुत नुकसान होगा। मैं क्षमा करने को तैयार हूँ। रावण नहीं मानता। तब युद्ध होता है।
प्रजा संग है। उत्तराधिकार का ऐलान हो चुका है। राजा बनने वाले हैं राम कि अचानक आदेश आता है कि जंगल जाना है। कैकेयी के वर दशरथ की राजाज्ञा बन गए हैं। दशरथ चाहते हैं कि राम विद्रोह कर दें। उनसे बगावत कर राज्य छीन लें और राजा बन जाएं। उनका प्रण भी रह जाए। राम अधिकार से भी वंचित न रहें लेकिन राम क्या करते हैं? राम को राज्य का लोभ नहीं। छोटा भाई राजा बनेगा, इसी से प्रसन्न। वन जाने को तैयार हो जाते हैं। युवराजों के इतिहास के प्रतिकूल विद्रोह का ख्याल तक राम को नहीं आता जबकि वह शस्त्रधर हैं।
धनुष है, फिर भी राम शांति का विकल्प खोजते हैं। क्षमा का रास्ता चुनते हैं। राम के शरीर पर शस्त्र है, फिर भी वह लोगों को आतंकित नहीं करता। वह हर किसी को सुरक्षा देता है। शस्त्र का यह सन्तभाव सिर्फ राम के यहाँ सुलभ है। कृष्ण इसीलिए शस्त्रधारियों में राम हैं क्योंकि दुनिया के असंख्य शस्त्रधारियों में सिर्फ राम हैं, जिन्हें पता है कि शस्त्र की मर्यादा क्या है? जिन्हें पता है कि वीरता, शौर्य और बाहुबल क्रूरता, बर्बरता और अधिनायकवाद के पूर्वज हैं। वीरता से बर्बरता आएगी ही आएगी। करुणा मौलिक चीज है। दया, क्षमा, प्रेम मौलिक चीज है।
राम के जीवन में करुणा, प्रेम, दया और क्षमा ही मुख्य है। युद्ध लड़ना, जीतना राम के जीवन की त्रासदी है। राम मूलतः प्रेम करने वाले पुरुष हैं। क्रोधी नहीं हैं। आतंकित करने का नाम नहीं हैं। कल्याणकारी हैं, विध्वंसक नहीं हैं। इसलिए जिन्हें राम के क्रोधी मूर्तियों या तस्वीरों से श्रद्धा है, वो गलत राम को पूज रहे हैं। जिन्हें 'जय श्रीराम' वर्चस्व और दबदबे का विजयनाद लगता है, उन्होंने गलत रामायण पढ़ ली है। राम को जो सही से जानेगा, वह कभी नफरत का कारोबार नहीं कर पाएगा।
रामनवमी शुभ हो.
वाह बहुत सुंदर। प्रश्नों के साथ उनका उत्तर देता हुआ यह लेख संग्रहनीय है।
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