Thursday, 12 May 2022

आजकल-1

आजकल ऐसे कई मुद्दे भारतीय मीडिया में चर्चा हैं, जिनसे सांप्रदायिकता की गंध आती ही है। कल यानी कि 12 मई 2022 को ज्ञानवापी मामले में कोर्ट ने मस्जिद के सर्वे मामले में अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की अपील खारिज कर दी और कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा को बदलने से इनकार कर दिया। उन्होंने दो और कोर्ट कमिश्नर भी नियुक्त कर दिए। विशाल कुमार सिंह भी एडवोकेट हैं, जो कमिश्नर बनाए गए हैं। इसके अलावा अजय सिंह को असिस्टैंट कमिश्नर बनाया गया है। कोर्ट ने अपने आदेश में पूरी ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे कराने को कहा है। इसमें तहखाना भी शामिल है। इस दौरान वीडियोग्राफी भी कराई जाएगी। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन को आदेश दिए हैं कि इस कार्रवाई को पूरा कराया जाए और जो भी लोग इसमें व्यवधान डालेंगे, उनपर कार्रवाई की जाए।

दूसरा मुद्दा ताजमहल को लेकर था। ताजमहल के 22 कमरों को खोलने की याचिका पर सुनवाई जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि आप मानते हैं कि ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनाया है? क्या हम यहां कोई फैसला सुनाने आए हैं? जैसे कि इसे किसने बनवाया या ताजमहल की उम्र क्या है? हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि आपको जिस टॉपिक के बारे में पता नहीं है, उस पर रिसर्च कीजिए, जाइए एमए कीजिए, पीएचडी कीजिए, अगर आपको कोई संस्थान रिसर्च नहीं करने देता है तो हमारे पास आइए।

दोनों को मुद्दों को ऊपरी तौर पर देखें, तो दोनों ही इस्लाम विरोधी नजर आते हैं। दोनों ही मामले कल पूरे दिन टीवी चैनलों पर चलते रहे। बिना इसकी परवाह किए कि इनको बार-बार दिखाना भारतीय जनता के मानस पर धार्मिक सद्भाव को लेकर कैसा प्रभाव डालेगा? ऐसे ही आज की मीडिया कवरेज में एक कश्मीरी पंडित की हत्या प्रमुख विषय है। टीवी चैनलों ने मृतक राहुल भट्ट के पिता के हवाले से दावा किया है कि हत्या करने से पहले आतंकवादियों ने राहुल भट्ट से उनका नाम पूछा। वह ऑफिस में थे और नाम कन्फर्म हो जाने पर उन्हें गोली मार दी गई। राहुल बडगाम में राजस्व अधिकारी के पद पर तैनात थे। टीवी चैनल पर कश्मीरी पंडित की हत्या शीर्षक से लगातार इसकी कवरेज की जा रही है। 

कुछ दिन पहले कश्मीरी पंडितों को लेकर विवेक अग्निहोत्री की एक फिल्म भी आई थी। फिल्म को एक खास मजहब के लोगों के खिलाफ नफरत फैलाने वाला बताया गया था। फिल्म पर कश्मीर की अधूरी कहानी बताते हुए प्रोपोगेंडा फैलाने के भी आरोप लगे। पूरे देश में इस अधूरे सत्य वाली फिल्म देखने के बाद एक खास वर्ग के लोगों के प्रति नफरत की झलक देखने को मिली थी। इस फिल्म को देखने के बाद लोगों को रवांडा नरसंहार अनायास ही याद आने लगा था। कश्मीरी पंडित की हत्या या कश्मीर में किसी की भी हत्या एक प्रशासनिक विफलता की घटना है। सरकार दावे करती है कि कश्मीर से उसने आतंकवाद खत्म कर दिया है और वहां जनजीवन सामान्य हो गया है लेकिन फिर भी कश्मीरी पंडित की हत्या हो जाती है। 

टीवी चैनलों पर इसकी कवरेज देखकर लगता है कि किसी बड़े जनसमूह को भड़काने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, आप इसे प्रमाणित नहीं कर सकते लेकिन संवेदनशील मन के साथ देखेंगे तो महसूस करेंगे कि इस खबर की कवरेज में संवेदनशीलता जीरो है। खैर, इस घटना में एक डिवेलपमेंट ये भी है कि पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती राहुल भट्ट के घर जाना चाहती थीं। परिवार से मिलना चाहती थीं लेकिन प्रशासन ने उन्हें नजरबंद कर दिया है। 

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