चलो एक ऐसा दिया हम जलाएं,
कि हर झोपड़ी में बिछी रोशनी हो।
जलें कीट सारे घृणा के निरंतर।
प्रणय का उजाला गगन से मिला हो।
हर एक हाथ में हो मशालें हमेशा,
सिंचा जिससे उपवन सरस हो,खिला हो।
दिखे राह जाती सुबह की गली में,
जो हर चौखटों से चली रोशनी हो।
नयन में भी जलता दिया एक झिलमिल,
बुझे न आशाओं का दीपक कभी भी।
हर एक हाथ में हो मशालें हमेशा,
दिखे न निशा की छाया कभी भी।
हर एक ओर फैले मधुर राग जय का,
हर एक ओर फैली अमन रागिनी हो।
खिलें पुष्प रसधर विविध रंगधारी,
क्षितिज से भले ही न दिनकर दिखा हो।
जलें दीप की इतनी श्रेणियां निरंतर,
निशा में भी तम का असर न दिखा हो।
मिले राष्ट्र को नव शिखर-नव बुलंदी,
ये प्रण मन में हर क्षण सनी हो-बनी हो।
ये कर्तव्य निश्चित है पूरब दिशा का,
प्रकाशित धरा हो यही जिम्मेदारी,
रोशन हो दुनिया,किरण बांटते हम,
बनें देश भारत सुबह की सवारी।
निखिल विश्व को साथ आना पड़ेगा,
तिमिर की हर एक राह गर रोकनी हो।
--राघवेन्द्र शुक्ल
कि हर झोपड़ी में बिछी रोशनी हो।
जलें कीट सारे घृणा के निरंतर।
प्रणय का उजाला गगन से मिला हो।
हर एक हाथ में हो मशालें हमेशा,
सिंचा जिससे उपवन सरस हो,खिला हो।
दिखे राह जाती सुबह की गली में,
जो हर चौखटों से चली रोशनी हो।
नयन में भी जलता दिया एक झिलमिल,
बुझे न आशाओं का दीपक कभी भी।
हर एक हाथ में हो मशालें हमेशा,
दिखे न निशा की छाया कभी भी।
हर एक ओर फैले मधुर राग जय का,
हर एक ओर फैली अमन रागिनी हो।
खिलें पुष्प रसधर विविध रंगधारी,
क्षितिज से भले ही न दिनकर दिखा हो।
जलें दीप की इतनी श्रेणियां निरंतर,
निशा में भी तम का असर न दिखा हो।
मिले राष्ट्र को नव शिखर-नव बुलंदी,
ये प्रण मन में हर क्षण सनी हो-बनी हो।
ये कर्तव्य निश्चित है पूरब दिशा का,
प्रकाशित धरा हो यही जिम्मेदारी,
रोशन हो दुनिया,किरण बांटते हम,
बनें देश भारत सुबह की सवारी।
निखिल विश्व को साथ आना पड़ेगा,
तिमिर की हर एक राह गर रोकनी हो।
--राघवेन्द्र शुक्ल
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