Tuesday, 17 January 2017

सस्पेंशन पुराण

अर्जुन:- हे केशव!ये 'स्क्रीनशॉट पत्रकारिता'* क्या होती है??
कृष्ण:- "छायाचित्रम् पोस्टस्य,आधारम् च निलम्बन:।
अस्या: पत्रकारिताया:,स्क्रीनशॉटम् जग मन्यते।।"1


अर्जुन:- हे सुरेश! Rohin Verma के सस्पेंशन का कारण क्या है??
कृष्ण:- "यथा बिडालः खिसियानी,नोचति स्तम्भार्जुनः!
तथा प्रशासनस्य कृति:,करोतु निलंबित रोहिनम्।2


अर्जुन:- हे स्वामी!'चाटुकारिता' की सबसे अच्छी खासियत क्या है?
श्रीकृष्ण:- हे विभिन्न 'उद्देश्यों' की पूर्ति हेतु जन्म लेने वाले अर्जुन!सुनो
"नैनं छिन्दति खुद्दारी,नैनं दहति लानत:।
चापलूस्या धर्मस्य तु,न च भेदति शर्म इव।"3
भावार्थ: चापलूसी या चाटुकारिता के धर्म को न 'खुद्दारी' छेद सकती है,न 'लानत' जला सकती है और न 'शर्म' ही उसका भेदन कर सकता है।


अर्जुन;- हे जनार्दन! सबसे खतरनाक क्या होता है??
श्रीकृष्ण:- हे अभिव्यक्ति की आज़ादी का भ्रम पाले हुए भारत! सुनो,
"न तु एटमवर्षार्जुन:,नैव भूकम्प भयानक:।
संप्रति 'बहुडेंजरभवति',लिख् केचित् ऑनलाइन:।"4
भावार्थ:- हे अर्जुन!न तो एटम बम की वर्षा भयानक होती है और न तो भूकम्प का आना ही खतरनाक होता है।आजकल सबसे खतरनाक होता है 'कुछ ऑनलाइन' लिख देना।??


अर्जुन:- हे माधव!मेरी इच्छा है कि मैं भी 'लेख' लिखूं।सामाजिक विसंगतियों पर 'आवाज' उठाऊं।किसी के साथ गलत हो रहा हो,तो उसके हक़ के लिए लड़ाई लड़ूं।आपका क्या मत है,रोहिण!
श्रीकृष्ण:- हा हा हा हा! हे सामाजिक/राजनीतिक विसंगतियों से कुपित लाल आँखों वाले मेरे प्रिय मित्र!
"मौनेवाधिकारस्ते,मा बोलेषु कदाचन।
भविष्यसित्वमपि'सस्पेंडम्',मा भू 'महानजर्नलिस्ट'।"5
भावार्थ:- मौन में ही तुम्हारा अधिकार है,बोलने में कदापि नहीं।बड़े पत्रकार' मत बनो,तुम भी 'सस्पेंड' हो जाओगे।


अर्जुन:- हे सुर में वंशी बजाने वाले!हे दही-माखनचोर!हे राजन्!जीवन के समर में अनेक पक्ष हैं।इन पक्षों में 'धर्म' कौन है?कृपया मार्गदर्शन करें,श्याम!
श्रीकृष्ण:- हे धन अर्जन से विरक्त और सदैव धर्म का दृढ़ता से पक्ष रखने वाले धनंजय! एक बात गाँठ बांध लो,
"धर्माधर्मानुचिन्तयेत्,ध्यानम् देहि धनञ्जय।
य: ददासित्वम् प्लेसमेंटम्,तस्मात्पक्षेवधर्मपक्ष।"6
भावार्थ:- हे धनञ्जय!धर्म और अधर्म के विषय में चिंतन करते हुए ये ध्यान देना कि जो तुम्हे 'प्लेसमेंट' दिलाये वही पक्ष 'धर्म' है।


अर्जुन:- हे श्रीकृष्ण! 'ऑनलाइन वॉर' के क्या नियम हैं?'फेसबुक'-'ट्विटर' आदि धर्मक्षेत्रों-कुरुक्षेत्रों में लड़ाइयां कैसे होती हैं?
श्रीकृष्ण:- हे पार्थ!
"श्रद्धावांल्लभते ज्ञानम्,'लेखकाश्च' निलम्बन:।
अस्थावांल्लभते 'शेयर','कमेंटकाराश्च' ब्लॉकम्भवन्ति।।"7
भावार्थ:- 'श्रद्धावान' ज्ञान प्राप्त करते हैं,और 'लेख लिखने वाले' निलंबन।
'आस्थावानों' को अपने पोस्ट पर 'शेयर' मिलता है,और 'कमेंट' करने वाले लोग 'ब्लॉक' हो जाते हैं।



अर्जुन:- हे सत् चित् आनंद!हे शाश्वत सत्य,हे जीवन के वसंत!हे सरकार! इस महाभारत के युद्ध में सर्वाधिक विद्वान् अर्थात् 'पंडित' अर्थात् 'होशियार' कौन है?और उसका क्या विशेष कार्य है?
श्रीकृष्ण:- हे ज्ञानी! हे प्राणों से प्रिय सखा! इस महाभारत में 'सबसे होशियार' प्राणियों के सन्दर्भ में तुम्हे जो बताने जा रहा हूँ,उसे ध्यान से सुनो!
"यस्योपदेशायादर्शानाम्,क्रांत्योत्थानाय भाषणम्।
समयस्योपस्थितम् मौनं,साधति य: स पंडित:।8
निष्कासनात्भयभीतम्, परित्राणाय च नौकरीम्।
सर्वादर्शम् विस्मृत्वा,स अनुसरयन्ति तटस्थता:।।"9
भावार्थ:- "जिसका 'आदर्श' सिर्फ उपदेश देने के लिए और 'भाषण' क्रान्ति के उत्थान के लिए हो,जो समय पड़ने पर 'मौन' साध लेता हो,वही 'पंडित' अर्थात् विद्वान् अर्थात् होशियार है।
वह 'निष्कासन' से भयभीत और नौकरी की रक्षा के लिए सभी 'आदर्शों' को भूलकर 'तटस्थता' का अनुसरण करता है।"



अर्जुन:- हे भगवन्! सृजन अथवा गठन की प्रक्रिया कितनी धीमी गति से होती है!है न!
अच्छा प्रभु!संसार में सर्वाधिक समय किसके सृजन/गठन अथवा निर्माण में लगता है?
श्रीकृष्ण:- हे धनुर्धर!
"नाकाशस्य नभूमेश्च,सृजनेबहुदेरम्भवति।
पर गठिते समितेस्तुहि,व्यतीतन्ति युगे-युगे।"

भावार्थ:- "हे पार्थ!आकाश और भूमि के सृजन अर्थात् निर्माण में बहुत देर नहीं लगती,लेकिन (अनुशासन) समिति के गठन में ही कई कई युग बीत जाते हैं।"



अर्जुन:- हे भगवन्! आपको क्या लगता है!क्या होगा आज?
श्रीकृष्ण:- हे अर्जुन!
"यत्र तथ्यस्तर्काश्च,आधारे सत्यार्जुन।
तत्र न चिंताभवितव्यम्,विजयस्यप्रतितुमतिर्मम्।।"

भावार्थ:- हे अर्जुन! जहाँ तथ्य और तर्क सत्य के आधार पर हों,वहां विजय के प्रति चिंतित तो नहीं होना चाहिए,ऐसा मेरा मत है।



अर्जुन:- हे दीन दयाल!इस पूरे घटनाक्रम से हमें क्या शिक्षा लेनी चाहिए?अंतिम कमेँट दीजिये!
श्रीकृष्ण:- हे भारत!

" यदा यदा हि कलमस्य,ग्लानिर्भवतिस्वतंत्रता।
अभ्युत्थानम् दमनस्य,तदायुद्धायोत्तिष्ठत्वम्।

परित्राणाय सत्यस्य,सत्यवादिनस्य कदाचन।
युद्धेसदा सत्यमेव,जयते नानृतम् पार्थ।"

भावार्थ:- जब जब कलम के स्वतंत्रता की हानि होती है,और (उसके) दमन का उत्थान होता है,तब तब तुम युद्ध के लिए खड़े हो जाओ।
हे पार्थ! सत्य की और सत्य बोलने वाले की रक्षा के लिए (लड़े गए इस) युद्ध में सदा सत्य की ही विजय होती है,झूठ की कभी नहीं।

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