भागना सीखो। भागना नहीं जानते तो कुछ नहीं जानते। यह देश बनाया है हमने कि यहाँ भागना नहीं आया तो भोगते फिरोगे। चाहे जो करो। अच्छा-बुरा, ग़लत-सलत लेकिन मुद्रा ऐसी रहे कि भागने को तैयार हो। जैसे ही कोई असंगत संकेत हो भाग निकलो। यह ध्यान रखते हुए कि समय रहते भाग नहीं लिए तो भोगना पड़ेगा। भागने और भोगने का यह अंतर बस इतना ही है। सैकंड-दो सैकंड भर में लिए गए फैसले भर का।
भागने के लिए ज़रूरी नहीं है कि पैर हो या पैर गतिमान हो। एक जगह बैठे-बैठे भी भागा जा सकता है। एक झटके में अपने सहनागरिक, सहग्रामीण, सहपाठी और सहकर्मी के पाले से। एक फैसले भर में झट से काफी दूर भाग सकते हैं। नहीं भागोगे तो भोगोगे। वह सब कुछ जो तुम्हे अभी नहीं भोगना है। दो-चार दिन की तो राहत मिलेगी भाग लेने में तो क्यों न भाग लो।
भागने में दिव्यांगता की भी अपनी भूमिका है। पैरों में हो तो नहीं भाग सकते। ज़ेहन में हो तो उसेन बोल्ट से भी तेज भाग सकते हैं। ऐसे लोग भागते भी वैसे ही हैं। उन्हें बस एक कदम बढ़ाना होता है। फिर तो उन्हें लहर भगा ले जाती है। बिना शक्ति खर्च किये वह ऐसे लोगों से दूर भाग लेते हैं जो भोगने के विकल्प पर सर फोड़ रहे होते हैं। फिर वह उनकी खोपड़ी पर नाच रहे होते हैं। ऐसे भागे हुए लोग एक वक्त के बाद भूल जाते हैं कि भागना कैसे है? या ऐसा हो जाता है कि इनके पांव खींच लिए जाते हैं या फिर इनके नीचे की ज़मीन तोड़ दी जाती है। फिर उन्हें भागने का स्वप्न आता है। हर रोज एक स्वप्न। ऐसे लोग जब खुद भाग नहीं पाते तब भगाने वाले गिरोह में शामिल हो जाते हैं।
भागना कई प्रकार का होता है। छप्पन इंच का सीना लेकर भागने का अपना गौरव होता है। यह राष्ट्रहित में होता है और इसे राष्ट्रीय भाग भी कहा जा सकता है। यह बारम्बार भाग क्रिया होती है। इसमें भागने वाला मधुमक्खी के छत्ते पर बाण मारता है। फिर कुछ देर देखता है। जैसे ही मधुमक्खियों का दल परेड शुरू करता है, धनुर्धर भाग लेता है। फिर वह सीधे जापान या अमेरिका जाकर ही रुकता है। इधर सबके गाल तब तक फूल जाते हैं और जब वह लौटता है तब कोई कुछ बोलने की स्थिति में नहीं रहता।
परिस्थिति चाहे जो कुछ भी हो, मजे राजकुमारों के ही होते हैं। उन्हें क्या पड़ी है कि राजा कौन बने। थोड़ा-बहुत शस्त्र हिलाते-डुलाते हैं फिर थाईलैंड भाग जाते हैं। यह भागने की एकदम नई और अलग विधा है। इसमें आपके पांवों को भी पता नहीं चलता कि आप भागकर कहाँ गए हैं। फिर आप लौटते हैं और भागने की अगली तारीख तक किसी न किसी अभिनय में लग जाते हैं। इससे भी अद्भुत भाग तो स्टूडियो में होती है। वहां एक ही मालिक के बिस्कुट के लिए कई लोग भागते हैं। हड्डी नहीं कहूंगा क्योंकि शाकाहारी हूँ।
एक भाग तो वह भी भागा था। हालांकि, उसे भागना आता नहीं था। वह अपने जीवन की तरह, गेहूं के बीज की तरह धीरे-धीरे का अभ्यासी था। चलता-चलता कहीं न कहीं पहुँच जाने वाले पथिक की तरह। फिर एक दिन भाग गया। जीवन से ही भाग गया। भागना नहीं आता था लेकिन जब पीछे हंटर लगा हो तो बैल हो कि घोड़ा हो कि आदमी। अपने आप भागने लगता है। उसे तो भागने के लिए 32 हज़ार वर्गकिमी क्षेत्रफल की जमीन भी कम पड़ी। सो आकाश की ओर भाग गया। बोला, भय की सीमा से बाहर आने के बाद आकाश ही बचता है। सो उधर ही भागा।
फिर एक राष्ट्रीय स्तर का अंतरष्ट्रीय भाग भी होता है। यह पहली बार तब देखा गया था जब वह शाही मछुआरा कई लोगों का भाग लेकर भागा था। उसे भी तो लगा कि अब भाग जाना उचित है। उसे पूर्वाभास हो गया था कि लोग उसकी भागशक्ति छीन लेंगे। वह भी इसी देश का नागरिक था। भागना ही उसने भी सीखा था। बोला, इस देश की शिक्षा का इस्तेमाल करो। भाग लिया। उसके लिए धरती ने जगह दी। यहां धरतियों के पास झंडे होते हैं। ये झंडे बहुत से भगोड़ों को बचा लेते हैं। छिपा लेते हैं। उसने भी भागकर झंडा बदल लिया। हालांकि, उसे आकाश में नहीं भागना पड़ा। यह भी विचित्र रहा कि वह ज़मीन पर ही भागा और आकाश ने रास्ता दिया। पहले वाला जो आकाश में भागा उसे ज़मीन ने रास्ता दिखाया। यह भागने का अभियान था। सब अपनी-अपनी क्षमता, देशकाल के हिसाब से भागे।
वह पहली बार किसी राजनितिक विरोध प्रदर्शन के रिपोर्टिंग के लिए गई थी। वह धरना स्थल पर पहुंची। नेता से कहानी वाले प्रोफ़ेसर के लहजे में पूछा- नेताजी, आपको भाषण देना आता है। नेताजी बोले, ठीक-ठीक तो नहीं। वह बोली, अच्छा, आपको इस मुद्दे पर संविधान के प्रावधान के बारे में पता है? नेताजी बोले, बयान से खूब पलटे लेकिन कभी संविधान का पन्ना नहीं पलटा। वह बोली, अच्छा, यह जुटान किसलिए है, यह तो पता ही होगा! नेताजी लज्जित होने की मुद्रा में आते कि खाकी वाले आते दिखे। नेताजी झट्ट से उठे और रिपोर्टर से इतना ही पूछा, भागना आता है? इसके बाद जब उसने पलक उठाई तो किसी सरकारी अस्पताल में थी। बगल वाले मरीज ने कहा, आपको भागना आता तो यहाँ नहीं होतीं और हम भाग सकते तो यहां नहीं रहते।
यह भागने की महिमा है। भागने की यही महत्ता है इसलिए भागना सीखो। अपनी जिम्मेदारियों से भागो। कर्तव्यों से भागो। अपनी सच्चाई से भागो। अपने ईमानदारी से तीव्र प्रस्थान करो। भागने का युग भी तो है। दुनिया की दौड़ है। भागोगे नहीं तो रौंद दिए जाओगे। पहले भारत कृषि प्रधान देश था। अब भारत भाग प्रधान देश है। आने वाले दिनों में यह भाग्य प्रधान देश हो जाएगा। इसलिए जूते कस लीजिए। दिशा देख लीजिए। अब तय कर ही लीजिए। नहीं भागना चाहने का कोई विकल्प नहीं है। आप चाहें तो सवाल न कीजिए। विरोध न कीजिए। उंगली न उठाइये। चुप मारकर बैठ जाइए। लेकिन भाग आप तब भी रहे होंगे। कहीं न कहीं से। किसी न किसी से। भागिए और सम्पूर्ण भागिए क्योंकि आपका देश अब भाग प्रधान देश बन चुका है। भागेंगे नहीं तो भकोस लिए जाएंगे और भागते हुए रुकेंगे तो रौंद दिए जाएंगे।
नवभारत टाइम्स ऑनलाइन में
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