Tuesday, 10 December 2019

सिर्फ वही जीता

"सिर्फ वही जीता जो हारा"

एक स्पीड ब्रेकर जैसी यह पंक्ति कुछ देर रोक तो देती ही है कि एक बार और पढ़ो। सिर्फ वही जीता। जो हारा। कवि के कहन के मूल में शायद प्रेम की महत्ता पर ज्यादा जोर है। जीत मतलब विराम। विराम मतलब पूर्णता। पूर्णता मतलब संतुष्टि। संतुष्टि मतलब मोक्ष। मोक्ष मतलब मुक्ति। इस तरह जीत का अर्थ मुक्ति तक पहुंच रहा है। प्रेम तक नहीं। कवि का जोर प्रेम पर है। लक्ष्य से प्रेम। जो जीता वह तो पूर्णकाम हो गया। संतुष्ट हो गया और संतुष्टि में प्रेम का जीवन नहीं है। जैसे, विकास के शिखर पर फूल के मुरझाने की शुरुआत हो जाती है। वैसे ही, प्रेम की पूर्णता में उसके पतन की आधारशिला हो सकती है।

जो हारा, वह इस पूर्णता से वंचित रह गया। वह अपने अभाव के साथ अभी जीवित है। वह अभी सरस प्रेम की संभावनाशीलता में जीवित है। वह प्रेमोन्मुख है। अपने लक्ष्य के प्रेम में। शायद इसलिए वही जीत गया है। क्योंकि, उसकी हार में एक अभाव की जीत है। यह अभाव भावना की सबसे सुंदर मूर्ति प्रेम में प्राण भरता है। वह हारकर भी इसीलिए जीत गया।

थोड़ा दूसरी दृष्टि से भी देखते हैं। आप प्रेमियों का इतिहास उठाकर देखिए। विजेताओं का इतिहास नहीं, इतिहास के विजेताओं को देखिए। आप देखेंगे तो पाएंगे कि सभी विजेता दरअसल जीते हुए लोग नहीं हैं। वे सब हारे हुए हैं। अशोक की जीत-हार के अर्थ पर आज भी विवाद है। यह विवाद न हो अगर मान लिया जाए कि प्रेम की आधारभूमि पर उसकी समस्त जीत दुनिया की सबसे बड़ी हार है।

बड़े विजेता हुए कृष्ण। विजेताओं के इतिहास में भी वह दर्ज हैं लेकिन उल्लेखनीय वह इसलिए भी हैं क्योंकि वह इतिहास के विजेताओं में भी शामिल हैं। उनके जीवन की अपूर्णता और उनकी हार युगों बाद भी भावना की पराकाष्ठा के दृष्टान्त के रूप में याद की जाती है। क्या वह हारे? यीशु संसार के सबसे बड़े पराजितों में गिने जाते हैं। उन्हें उनके दौर के कथित विजेताओं ने सूली पर चढ़ा दिया। सुकरात को उनके दौर के शाहों ने ज़हर पिला दिया। मीरा को भी लोगों ने ज़हर दे दिया। इन लोगों ने अपने जीवन के लक्ष्यों से मुलाकात नहीं की थी। वह अपूर्ण मरे थे। हारे हुए-से लेकिन क्या वह हारे?

हम सोचें कि क्या इनकी असफलताओं को हार कहेंगे? क्या एक फूल के पौधे को उखाड़कर दावा किया जा सकता है कि उस पुष्प की नस्ल ख़त्म कर दी गई? नहीं। थोड़ी देर के लिए लोगों को अंदेशा हो सकता है कि ऐसा हुआ लेकिन उखड़े हुए पौधों के फूल सूखते हैं, झरते हैं और बीज बनकर फिर उग जाते हैं। उनमें सृजनशीलता होती है। भगत सिंह को कौन विजेता कहेगा? सांसारिक हार-जीत के मानकों पर तो वह पराजित योद्धा ही हैं लेकिन क्या ऐसा है? भगत सिंह से बड़ा विजेता क्या स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कोई है? गांधी भी नहीं हैं। इतिहास कहेगा कि गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन जीत लिया। वह विजेता हैं लेकिन यह बात केवल गांधी ही जानते थे कि वह कितने बड़े पराजेता थे।

इस तरह सभी हारे हुए लोग मूलतः प्रेमी रहे और प्रेम में हारे हुए लोगों की हार बंजर नहीं रही। वह उपजाऊ रही। सृजनशील रही। उसने विजय की कोई ज़मीन नहीं जीती, उसने अपनी जमीन पर जीत को उगाया। दुनिया ने समझा कि वे हारे लेकिन असल में सिर्फ वही जीते। यही इस दुनिया का मर्म है। यही शायद इस पंक्ति का मर्म है।
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(सन्दर्भ) कविता

बटोही, तेरी प्यास अमोल,
तेरी प्यास अमोल !
नदियों के तट पर तू अपने
प्यासे अधर न खोल,
बटोही, तेरी प्यास अमोल !

जो कुछ तुझे मिला वह सारा
नाखूनों पर ठहरा पारा,
मर्म समझ ले इस दुनिया का
सिर्फ़ वही जीता जो हारा ।

सागर के घर से दो आँसू-
का मिलना क्या मोल ।

जल की गोद रहा जीवन भर
जैसे पात हरे पुरइन के
प्यास निगोड़ी जादूगरनी
जल से बुझे न जाए अगिन से ।

जल में आग आग में पानी
और न ज़्यादा घोल !
बटोही, तेरी प्यास अमोल,
तेरी प्यास अमोल!

(शतदल)

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