राघवेंद्र शुक्ल,हिंदी पत्रकारिता,रोल नं.40
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की यात्रा मतदान,परिणाम से
होते हुए अब सरकार बनाने के दौर तक आ पहुंची है।उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में
जहां भारतीय जनता पार्टी तो वहीं पंजाब में कांग्रेस को सरकार बनाने का स्पष्ट
जनादेश जनता ने दे तो दिया है,लेकिन मणिपुर और गोवा में किसी भी पार्टी को पूर्ण
बहुमत नहीं मिलने से वहां की राजनीतिक स्थिति अब अनिश्चित बनी हुयी थी।मणिपुर और गोवा
में कांग्रेस के बड़ी पार्टी होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाकर एक
नए राजनैतिक बहस को जन्म दे दिया है।
गोवा के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर |
दरअसल 11 मार्च को आए चुनाव परिणामों में गोवा की किसी भी
पार्टी को सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं मिला,हालांकि गोवा की 40 विधानसभा सीटों
में से 17 पर जीत दर्ज कर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरी थी,लेकिन सरकार
बनाने के लिए राज्यपाल के आमंत्रण का इंतजार करने का खामियाजा उसे कुछ यूं भुगतना
पड़ा कि भारतीय जनता पार्टी ने गोवा फारवर्ड पार्टी,महाराष्ट्र गोमंतक पार्टी और
निर्दलीय विधायकों के गठजोड़ से न सिर्फ सरकार बनाने का दावा कांग्रेस से पहले प्रस्तुत
किया बल्कि राज्यपाल की स्वीकृति के बाद मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व में गोवा में
नयी सरकार बना ली।इसके बाद भाजपा के इस अप्रत्याशित दांव-पेंच से झल्लाई कांग्रेस
ने राज्यपाल के पास न जाकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन उसे वहां से भी
कोई मदद नहीं मिल पायी।सुप्रीम कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते
हुए भारतीय जनता पार्टी को शीघ्रातिशीघ्र सदन में बहुमत साबित करने का आदेश दे
दिया।चुनावों में सबसे ज्यादा 17 सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी के पास इस समय
सिवाय 16 मार्च का इंतजार करने के और कोई चारा नहीं है,जिस दिन गोवा के
नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर सदन में अपना बहुमत साबित करेंगे।
राज्य के 40 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भारतीय जनता पार्टी
के महज 13 उम्मीदवारों को इस बार जीत नसीब हुयी है।जनता के सत्ताविरोधी रुख का आलम
इस कदर था कि राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पर्सेकर भी अपनी सीट
नहीं बचा पाए।चुनाव प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी के गोवा की जनता के सामने
मनोहर पर्रिकर को पुनः मुख्यमंत्री बनाने के दावे करने के बावजूद उसे राज्य की
जनता ने सीधे नकार दिया।बावजूद इसके जोड़-तोड़ की राजनीति का सहारा लेकर भाजपा
वहां सरकार बनाने में कामयाब रही।भारतीय राजनीति में जोड़-तोड़ और खरीद-फरोख़्त की
राजनीति के विरोधी और स्वच्छ निर्वाचन के पक्षधर लोग सरकार बनाने के इस तरीके को
पचा नहीं पा रहे हैं।राजनीतिक बहस में हमेशा मुखर होकर अपनी बात रखने वाले भारतीय
जनसंचार संस्थान के छात्र समर राज बताते हैं कि ‘संवैधानिक
व्यवस्था के अनुसार त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी को
सरकार बनाने के लिए इसलिए आमंत्रित करता है क्योंकि सरकार बनाने के लिए आवश्यक
विधायकों की संख्या दूसरे नंबर की पार्टी के मुकाबले सबसे बड़ी पार्टी के लिए कम
होती है,जिससे विधायकों की खरीद-फरोख़्त पर लगभग नियंत्रण होता है।लेकिन गोवा में
ऐसा नहीं हुआ।इसलिए वहां की नवनिर्वाचित सरकार की पवित्रता पर प्रश्नचिन्ह लगना
कोई बड़ी बात नहीं होगी’।इसी संस्थान के दूसरे छात्र आशुतोष
राय इस विषय पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहते हैं कि ‘चुनाव
परिणाम आने के बाद राज्यपाल की दृष्टि में जो दल अपने आप को बहुमत की स्थिति में
होने को लेकर आश्वस्त कर लेता है,राज्यपाल उसे ही सरकार बनाने के लिए आमंत्रित
करते हैं।गोवा में कांग्रेस से पहले भाजपा ने छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों को
लेकर अपना पक्ष मजबूत कर लिया था,इसलिए राज्यपाल के भाजपा को सरकार बनाने के लिए
आमंत्रण देने पर किसी भी प्रकार के पक्षपात आदि का प्रश्न नहीं उठाना चाहिए’।
कांग्रेस इस पूरे मसले पर अपने आप को छला हुआ महसूस कर रही
है।पार्टी के एक नेता का कहना है कि ‘अब कोई
दो दिन के लिए मुख्यमंत्री बनना चाहता है तो कोई क्या करे’।उनका
इशारा 16 मार्च को सदन में बहुमत साबित करने की ओर था,जिसको लेकर वो आश्वस्त हैं कि
सदन में मनोहर पर्रिकर बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे,जिसकी संभावना कम ही दिखायी
पड़ती है।
राजनैतिक गुणा-भाग जो कुछ भी कहे,भले ही भाजपा सरकार बनाने
के लिए आवश्यक आंकड़ों का इंतजाम कर ले,लेकिन नैतिक दृष्टि से यह सरकार कसौटी पर
खरी नहीं उतरती।संवैधानिक कायदा कहता है कि दो तिहाई सीटों पर जीत किसी भी दल को
सरकार बनाने का अधिकार प्रदान करती हैं,लेकिन जिस दल ने गोवा में सरकार बनायी है,जनता
ने उस दल को दो तिहाई सीटों पर नकार दिया है।पिछले पांच वर्षों के भाजपा शासन के
कामों पर प्रतिक्रिया देते हुए गोवा के मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी की बजाय
कांग्रेस को गोवा सरकार के लिए ज्यादा उपयुक्त माना था,लेकिन सत्ता पर काबिज होने
की लालसा सारे आदर्श,सारे सिद्धांत और सारी नैतिकता को दरकिनार कर देती है।गोवा
फारवर्ड पार्टी,महाराष्ट्र गोमंतक पार्टी और निर्दलीय विधायकों को शर्तों की
बुनियाद पर जोड़कर भाजपा ने गोवा में सरकार तो बना ली लेकिन सच तो यही है कि गोवा
की जनता ने भाजपा को एक सरकार के तौर पर खारिज कर दिया था।फिर भी भाजपा का वहां
सरकार बना लेना बहुमत आधारित लोकतांत्रिक निर्वाचन व्यवस्था पर एक प्रश्न खड़ा
करता है जो इस व्यवस्था में कुछ सुधारात्मक परिवर्तन की दिशा में सोचने को विवश भी
करता है।भाजपा का वहां सरकार बना लेना कतई गलत नहीं हो सकता,लेकिन यह कहना भी गलत
नहीं है कि यह सरकार उस दो तिहाई जनादेश की अवज्ञा है जिसने भाजपा को इस बार सरकार
बनाने के लायक नहीं समझा था।
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