Wednesday, 24 January 2018

कविताः इससे इज्जत बच जाएगी तुम्हारी

भगवा

सूरज लाल है
शरम से
दिए की रोशनी मुंह छिपा रही है
पराजित होकर।
दादी से नजरें नहीं मिला पा रहे
उनके भगवांबर ठाकुर।
कि जबसे हमने कहा है
कि तुम क्या दोगे हमें प्रकाश
जो बचा पाए नहीं अपना रंग
कुछ डकैतों के लूटने से
जो बांट रहे हैं अंधेरे उन्हें,
जिन्होंने पहले भी ठीक से उजाला नहीं देखा।
देव, दिवाकर और दीवा
अपने वस्त्रों का रंग बदल सकते हो
तो बदल डालो,
कि इससे
इज्जत बच जाएगी तुम्हारी।

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