आठ नवंबर की तारीख को कौन भूल सकता है। आठ नवंबर छोड़िए, 9 नवंबर याद करिए। एक बुरे वक्त की तरह था वह दौर, जिसको याद करते ही आपके चेहरे पर एक सुकून भाव तैर जाएगा कि चलो बीत गया किसी तरह वह वक्त। मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के तहत लिए गए एक फैसले ने समूचे देश के लोगों की समस्त अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया था। रिजर्व बैंक के गवर्नर की जगह 'सुधार' और 'प्रहार' के स्वयंभू पुरोधा और देश के प्रधानमंत्री के 'मितरोंमय' संबोधन ने तीन कारणों को गिनाते हुए देश पर नोटबंदी का 'थोपनीकरण' कर दिया। पहला कारण था कि इससे काले धन की समाप्ति सुनिश्चित होगी, दूसरा जाली नोटों पर लगाम लगेगी और तीसरा कारण था आतंकवाद की अर्थव्यवस्था के स्रोत बंद हो जाएंगे। जब देश में इस फैसले को लागू किया गया था उसके कुछ दिन बाद राज्यसभा में बोलते हुए पूर्व प्रधानमंत्री और निस्संदेह एक मंजे हुए अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि नोटबंदी जीडीपी के गिरावट का कारण बनेगी और यह सरकार द्वारा कानूनन चलाई जा रही व्यवस्थित लूट है। आज मनमोहन सिंह की बातें थोड़ी बहुत स्पष्ट जरूर हो रही होंगी। राहुल गांधी ने एक भाषण में बोलते हुए कहा था कि नोटबंदी की घोषणा के तुरंत बाद जब उन्होंने मनमोहन सिंह से बात करते हुए उन्हें इसकी जानकारी दी थी तब वह एकदम शॉक्ड हो गए थे। कुछ मिनट बाद जब मनमोहन सिंह बोले तो उनके शब्द थे - "ये इन लोगों ने क्या कर दिया।"
नोटबंदी होते ही सारा देश एटीएम की लाइनों में देश के प्रति एक अमूर्त भक्ति के मार्फत कुछ दिनों के लिए फिट हो गया। फिट इसलिए हो गया कि तब एटीएम से पैसा निकालने की सीमा 2500 रुपए थी जो शायद बहुतों की जरूरत के हिसाब से काफी कम थी, इसलिए हर रोज लाइन में लगना उनकी मजबूरी थी। बेर सराय में छोटी दुकानें लगाने वालों की विवशता हम लोगों से बात करते वक़्त साफ़ झलकती थी। लेकिन नोटबन्दी के साथ 'देशभक्ति' का भी मसला था, इसलिए उनके हिसाब से भी 'मोदीजी' का ये बहुत सही फैसला था। 100 से ज्यादा लोगों की जानें गयीं और 'देशभक्तियुक्त उद्देश्यों' की पूर्ति में जान देने वाले 'अघोषित शहीदों' के कफ़न पर देश के नेताओं के विश्लेषण छपते-मिटते रहे। लाखों लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। साथ ही इसके बाद भी नयी बेरोजगारी खेंप को नौकरियां दुश्वार हो गईं थीं।
प्रधानमंत्री भावुक आदमी हैं। उनसे देश का यह दर्द देखा नहीं जा सकता था। सो वह तो निकल लिए थे जापान। उनके सहयोगियों के पास प्रधानमंत्री के उन्हीं तीन कारणों की परिधि में जनता को सर्वश्रेष्ठ जवाब देने की होड़ लगी थी। बाद में जब एक एक कर उनके कारणों के ये तीनों महल ताश के पत्तों की तरह ढहते गए, तब जापान से लौटे प्रधानमंत्री ने रहस्य से पर्दा उठाया कि नोटबंदी का असली कारण तो देश को कैशलेस बनाना था। ये बयानों के यूटर्न का दौर था और जनता को उसकी मूर्खता का भान कराने का भी।
खैर, पुराने 500 और 1000 के नोटों की आज पहली पुण्यतिथि है। 9 नवंबर 2016 की शुरूआत से ही 500 और हजार के नोट लीगल टेंडर से बााहर हो गए थे। प्रधानमंत्री ने इसके प्रभावों के प्रदर्शन के लिए पचास दिन का वक्त मांगा था। साल भर हो गए और नोटबंदी के चारों लक्ष्य आपके सामने हैं। वक्त ने अपना जवाब हम सबके सामने रख दिया है। पहचानना हमें है कि जवाब क्या-क्या हैं। उसके लिए सबसे पहले राजभक्ति और स्वयं-परिभाषित राष्ट्रभक्ति के चश्मे को उतारना होगा। और देखना होगा कि जिन मच्छरों को मारने के लिए सरकार ने तोप निकाला था, उनकी स्थिति क्या है?
हाल ही में जब बैंक में जमा किए गए सारे पुराने नोटों की गिनती की गई थी तो पता चला था कि तकरीबन 99 प्रतिशत पुराने नोट बैंक में वापस आ गए हैं। सरकार तब दावा करती थी कि नोटबंदी की वजह से अधिकांश काला धन अर्थव्यवस्था से बाहर हो जाएगा। क्या ऐसा हुआ? कहाँ गया काला धन? हालाँकि इसकी आहट तो फैसले के कुछ ही दिनों बाद से आनी शुरू हो गयी थी। तमाम अर्थशास्त्रियों का कहना भी था कि बहुत कम मात्रा में काल धन कैश में होता है।
नोटबंदी के बाद जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है। फर्स्टपोस्ट में छपे एक लेख में इशफाक़ नसीम ने कुछ आंकड़े पेश किए हैं जो हकीकत से हम सबका थोड़ा बहुत परिचय करवाते हैं। नसीम लिखते हैं कि गृह मंत्रालय और जम्मू और कश्मीर पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 में 53 सुरक्षा बलों के जवान शहीद हुए थे और 67 आतंकी मारे गए थे। 2014 में यह संख्या क्रमशः 47 और 110 थी। 2015 में यह आंकड़ा 39 और 108 का था। 2016 में यह एक बार फिर बढ़कर 82 और 150 पर पहुंच गया।
प्रधानमंत्री द्वारा जो तीसरा कारण गिनाया गया था वह था इस फैसले के बाद से जाली नोटों के इस्तेमाल पर लगाम लगेगी। नोटबंदी के वक्त बाजार में 500 और 1000 के तकरीबन 85 फीसदी नोट चलन में थे। एक केंद्रीय बैंक के अनुमान के मुताबिक देश में तकरीबन 0.2 प्रतिशत ही जाली नोट प्रचलन में थे। ऐसे में इतनी कम मात्रा में जाली नोटों पर प्रहार करने के लिए 85 फीसदी नोटों को बंद कर देने का फैसला करने की मूर्खता करना बड़ी हिम्मत का काम था।
मेरे गांव से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर एक कस्बा है रूद्रपुर, जहां हम रहते थे। रूद्रपुर में इंटरनेट सर्फिंग में कोई खास समस्या नहीं थी। बैंक-वैंक भी पर्याप्त मात्रा में हैं। अधिकांशतः कैशलेस रहने वाले 6-7 एटीएम भी हैं। लेकिन इसी रूद्रपुर से 12 किलोमीटर पर स्थित हमारे गांव में न तो इंटरनेट की सुविधा है, न बैंक हैं और न एटीएम। सिर्फ हमारे गांव में ही नहीं, आस-पास नजदीकी बैंक या फिर इंटरनेट नेटवर्क ढूंढने में आपको तकरीबन 6-7 किलोमीटर तक की यात्रा करनी पड़ सकती है। उत्तर प्रदेश के एक महानगर गोरखपुर से डेढ़ घंटे की दूरी पर स्थित एक गांव कैशलेस इकॉनॉमी के मंसूबों के आधार की सच्चाई बयान करता है। बिना तैयारी किए कैशलेस इकानॉमी के लिए ही अगर नोटबंदी का फैसला लिया गया था तो आप यह सवाल नरेंद्र मोदी से पूछिए कि डिजिटल कैशलेस ट्रांजेक्शन ग्रामीणों की सुविधा के लिए हैं या उन्हें और आर्थिक मुसीबत में डालने के लिए है।
नोटबंदी के उद्देश्यों के कड़वे हकीकत का यह एक उथला विश्लेषण है। तमाम आर्थिक दांवपेंच की तो मुझे कोई जानकारी नहीं है। विमुद्रीकरण का सार्थक, वास्तविक और तार्किक उद्देश्य क्या था यह अभी तक शायद सरकार भी तय नहीं कर पाई है इसीलिए, समय-समय पर जिम्मेदारों के बयान अपने-अपने मानी बदलते रहते हैं। अब तो इस सरकार के किसी भी दावे पर भरोसा नहीं होता। बाकी नोटबंदी के प्रभावों की अगर एकवर्षीय समीक्षा आप भी करना चाहते हैं तो पिछले साल दिसंबर में नोटबंदी के एक महीने बाद की स्थिति की तस्वीर खींचता यह लेख पढ़िए, साथ में संलग्न कर रहा हूं। इससे आप अपने अनुभवों और विवेक के हिसाब से शायद स्थिति का बेहतर विश्लेषण कर पाएं।
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