Friday, 29 December 2017

कविताः मैं टटोल रहा हूं अक्षयपात्र

रिक्तता

जीवन के अक्षयपात्र की रिक्तता
दुर्वासा और उनके सौ शिष्यों की
उपस्थिति से भयभीत है।
प्राण की वेदना
द्रौपदी की प्रार्थना में शरणागत है,
और मैं टटोल रहा हूं अक्षयपात्र
कि तुम मिल जाओ कहीं
चावल के तिनके की तरह..

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