29जुलाई2017: क्यूंकि आज हमारे #ShuklaJi का बड्डे है...
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हम जितने उलझे हुए हैं शुक्ला जी उससे कई गुना सुलझे हुए व्यक्तित्व हैं। शुक्ला जी, प्रदीप सर, सत्येंद्र सर, विजय सर (बड़के भईया) और हम क्लास की सबसे पीछे वाली सीट पे बैठते-बैठते दोस्त बन गये थे, कमाल की बात ये कि कितनी भी मार-मशक्कत हो जाए सीट के लिए पर हमारी सीट पे कोई पेन तक नहीं रखता था। मैथ की क्लास अलग चलती थी, और पीछे शुक्ला जी और प्रदीप का संसद भवन अलग ही आकार ले रहा होता था, कभी तो बहस में जब हम लोग भी शामिल हो जाते थे तो बाकी स्टूडेंट क्लास में धारा-144 की माँग करने लगते थे।
हम और शुक्ला जी Saturday-Sunday को 3-4 घंटे सिर्फ चाय पिया करते थे, जब तक बुधई जी दुकान से भगा नहीं देते थे तब तक। हमारी प्रेम कहानी में शनिवार-रविवार की चाय का योगदान अतुलनीय है। बहुत झेलते थे शुक्ला जी हमें. मेरी कहानी के लेखक शुक्ला जी थे, निर्माता और निर्देशक राज और शौर्य थे... क्या करना है, कैसे करना है, क्या भूल के भी नहीं करना है, अबकी मिलके क्या कहना, अबकी बुलाये तो रुकना है या चलते जाना है, सबकुछ यही तीनों लोग डिसाइड करते थे। हम तो बस एक्टर थे। कहानी तो इन्होंनें लिखी है। ये बताना इसलिए जरूरी है क्योंकि पिछले 4 साल में वही एक यादगार दौर था, और कुछ तो भुलाए नहीं भूलता (खासकर रिजल्ट). हम लोग दारागंज स्टेशन पर रिजल्ट आने के एक दिन पहले सुसाइड की प्रैक्टिस करने जाते थे, ट्रेन 100 मीटर दूर रह जाती तो कूद के किनारे आ जाते फिर कहते यार लोग कैसे मर जाते हैं??
सब एकदम सही तो नहीं लेकिन सस्टेन करने लायक चल रहा था और फिर एक दिन Shukla Ji भी दिल्ली चले गये।
एक साल से ज्यादा हुए सर आपको गये, और उससे ज्यादा दिन मिले हुए। सर, अब सैटर्डे-संडे की शाम सोते-सोते निकाल देता हूँ, मेरी कहानी सुनने वाला कोई नहीं बचा आपके बाद, राजनीति में क्या 'क्यूं' हो रहा है ये समझाने वाला कोई नहीं है, हर सिचुएशन में आप कोई कविता सुना के जता देते थे कि दुनिया यहीं खत्म नहीं होती।
सर, यकींन मानिये, बहुत याद करते हैं आपको। जैसे आप सबको जोड़ रखे थे, आपके शहर छोड़ के जाते ही सब जाते रहे और हम अकेले होते रहे। आप स्टेशन की ढलान से उतरते हुए अक्सर कहते थे कि मैं एक अच्छा जर्नलिस्ट बन जाऊँ और आप आईएएस.. फिर दिखायेंगे हम वो परिंदे हैं जो उड़ने लगे तो आसमान चीर के पार निकल जाएंगे। सर, बस यही एक सपना अभी टूटा नहीं है।
आपसे 'बड़ी' उम्मीदें हैं, मैं यहाँ आज आपके बारे में कुछ नहीं कहूँगा, कहने लायक हूं भी नहीं, आपके बारे में लिखा नहीं जा सकता, कुछ शब्दों में सीमित कैसे कर दूँ आपको? बस इतना पता है दुनिया सलाम करेगी आपको, ये मेरा विश्वास है।
#HappyBdaySir
#GodBlessYou
(विपिन कुमार त्रिपाठी की फेसबुक वॉल से साभार)
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हम जितने उलझे हुए हैं शुक्ला जी उससे कई गुना सुलझे हुए व्यक्तित्व हैं। शुक्ला जी, प्रदीप सर, सत्येंद्र सर, विजय सर (बड़के भईया) और हम क्लास की सबसे पीछे वाली सीट पे बैठते-बैठते दोस्त बन गये थे, कमाल की बात ये कि कितनी भी मार-मशक्कत हो जाए सीट के लिए पर हमारी सीट पे कोई पेन तक नहीं रखता था। मैथ की क्लास अलग चलती थी, और पीछे शुक्ला जी और प्रदीप का संसद भवन अलग ही आकार ले रहा होता था, कभी तो बहस में जब हम लोग भी शामिल हो जाते थे तो बाकी स्टूडेंट क्लास में धारा-144 की माँग करने लगते थे।
हम और शुक्ला जी Saturday-Sunday को 3-4 घंटे सिर्फ चाय पिया करते थे, जब तक बुधई जी दुकान से भगा नहीं देते थे तब तक। हमारी प्रेम कहानी में शनिवार-रविवार की चाय का योगदान अतुलनीय है। बहुत झेलते थे शुक्ला जी हमें. मेरी कहानी के लेखक शुक्ला जी थे, निर्माता और निर्देशक राज और शौर्य थे... क्या करना है, कैसे करना है, क्या भूल के भी नहीं करना है, अबकी मिलके क्या कहना, अबकी बुलाये तो रुकना है या चलते जाना है, सबकुछ यही तीनों लोग डिसाइड करते थे। हम तो बस एक्टर थे। कहानी तो इन्होंनें लिखी है। ये बताना इसलिए जरूरी है क्योंकि पिछले 4 साल में वही एक यादगार दौर था, और कुछ तो भुलाए नहीं भूलता (खासकर रिजल्ट). हम लोग दारागंज स्टेशन पर रिजल्ट आने के एक दिन पहले सुसाइड की प्रैक्टिस करने जाते थे, ट्रेन 100 मीटर दूर रह जाती तो कूद के किनारे आ जाते फिर कहते यार लोग कैसे मर जाते हैं??
सब एकदम सही तो नहीं लेकिन सस्टेन करने लायक चल रहा था और फिर एक दिन Shukla Ji भी दिल्ली चले गये।
एक साल से ज्यादा हुए सर आपको गये, और उससे ज्यादा दिन मिले हुए। सर, अब सैटर्डे-संडे की शाम सोते-सोते निकाल देता हूँ, मेरी कहानी सुनने वाला कोई नहीं बचा आपके बाद, राजनीति में क्या 'क्यूं' हो रहा है ये समझाने वाला कोई नहीं है, हर सिचुएशन में आप कोई कविता सुना के जता देते थे कि दुनिया यहीं खत्म नहीं होती।
सर, यकींन मानिये, बहुत याद करते हैं आपको। जैसे आप सबको जोड़ रखे थे, आपके शहर छोड़ के जाते ही सब जाते रहे और हम अकेले होते रहे। आप स्टेशन की ढलान से उतरते हुए अक्सर कहते थे कि मैं एक अच्छा जर्नलिस्ट बन जाऊँ और आप आईएएस.. फिर दिखायेंगे हम वो परिंदे हैं जो उड़ने लगे तो आसमान चीर के पार निकल जाएंगे। सर, बस यही एक सपना अभी टूटा नहीं है।
आपसे 'बड़ी' उम्मीदें हैं, मैं यहाँ आज आपके बारे में कुछ नहीं कहूँगा, कहने लायक हूं भी नहीं, आपके बारे में लिखा नहीं जा सकता, कुछ शब्दों में सीमित कैसे कर दूँ आपको? बस इतना पता है दुनिया सलाम करेगी आपको, ये मेरा विश्वास है।
#HappyBdaySir
#GodBlessYou
(विपिन कुमार त्रिपाठी की फेसबुक वॉल से साभार)
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