अबकी आना
तुम पांव दबाकर नवल वर्ष!
हमने कितनी आशा बांधी
थी, आए तुम बनकर आंधी,
खबर हो गई लोग-बाग को,
दिया कान भर, तुम प्रतिकूल।
हम बैठे थे दीप जलाए,
शंकित, चिंतित, मन घबराए,
माथे का भूगोल हुआ ज्यों
मुरझाता है कोई फूल।
तुम आए! या फिर आ धमके!
आते ही बिजली सा चमके,
मन के चंद्राशाओं को ज्यों
निगल गया बादल स्थूल।
सहमा-सहमा दीप बेचारा,
तड़क-भड़क से हारा-हारा
सोच रहा था कहीं प्रलय तो
नहीं आ गया है, मग भूल।
फिर तुमने क्या रंग दिखाया,
तहस-नहस का दृश्य बनाया,
ज्यों बरगद पर इधर फिर उधर
अपना जीवन रहा झूल।
पर जीवन तो हरी दूब है,
रगड़ी-मसली गयी खूब है,
झेल-ठेल तूफान, जी उठे
शीश तान हर बार तूल।
हे नवल भाग्य लेखनीकार!
हूँ थका हुआ, इसलिए यार!
जीवन के नवल सदन में तुम
तज अपने सारे धूल-शूल,
मत रिसियाना
करना प्रवेश सकुशल-सहर्ष।
अबकी आना
तुम पाँव दबाकर नवल वर्ष।
©राघवेन्द्र
तुम पांव दबाकर नवल वर्ष!
हमने कितनी आशा बांधी
थी, आए तुम बनकर आंधी,
खबर हो गई लोग-बाग को,
दिया कान भर, तुम प्रतिकूल।
हम बैठे थे दीप जलाए,
शंकित, चिंतित, मन घबराए,
माथे का भूगोल हुआ ज्यों
मुरझाता है कोई फूल।
तुम आए! या फिर आ धमके!
आते ही बिजली सा चमके,
मन के चंद्राशाओं को ज्यों
निगल गया बादल स्थूल।
सहमा-सहमा दीप बेचारा,
तड़क-भड़क से हारा-हारा
सोच रहा था कहीं प्रलय तो
नहीं आ गया है, मग भूल।
फिर तुमने क्या रंग दिखाया,
तहस-नहस का दृश्य बनाया,
ज्यों बरगद पर इधर फिर उधर
अपना जीवन रहा झूल।
पर जीवन तो हरी दूब है,
रगड़ी-मसली गयी खूब है,
झेल-ठेल तूफान, जी उठे
शीश तान हर बार तूल।
हे नवल भाग्य लेखनीकार!
हूँ थका हुआ, इसलिए यार!
जीवन के नवल सदन में तुम
तज अपने सारे धूल-शूल,
मत रिसियाना
करना प्रवेश सकुशल-सहर्ष।
अबकी आना
तुम पाँव दबाकर नवल वर्ष।
©राघवेन्द्र
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