Sunday 16 December 2018

समानांतरः उदासी का उत्सव

यह जीवन रिक्त स्थानों के कदम दर कदम चलने का बिंदुपथ है

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जब आप उस अजीब सी अनुभूति की छाया में होते हैं तब तक आप अलग ही एहसास से गुजर रहे होते हैं। वहां जीत-हार जैसी प्रतियोगिताएं भी होती हैं। दुख-आनंद से मनोभाव भी होते हैं। बहुत कुछ वाजिब लगता है। बहुत कुछ गलत लगता है। इन सबसे इतर रात के सन्नाटे में कभी शांत स्थिर दिमाग से सोचिए तो लगता है कि किस कहानी का हिस्सा बन गए हैं? क्या सच में जो कुछ भी आपके साथ हो रहा है उसके नायक आप ही हैं? हां, नायक ही। कहानी को आगे ले जाने वाला नायक भर ही।

नायकत्व के तमाम आधुनिक परिभाषाओं से अलग, अयोग्य और सर्वथा दूर। एक ऐसी स्थिति, जो आपसे बिल्कुल ही अनियंत्रित हो गई हो। जिसके कारणों का पता बिल्कुल ही सृष्टि के सृजन की कथा की तरह अजान हो। रहस्यमयी हो। जहां से दुख निकलता हो। दुख भी ऐसा कि आप गहराई में उतरते चले जाएं। जिसकी आपको आदत लग जाए। जो अगर किसी वजह से न हो तो आपको बेचैनी होने लगे और ऐसा भी लगे कि आप कुछ बहुत भारी और कीमती चीज खो रहे हैं।

हर वक्त विचारों में गोते लगाना। शांत हो जाना। गंभीर हो जाना। गूढ़ से गूढ़ जीवन-सूत्रों के अर्थ ऐसे उद्घाटित होने लगते हों जैसे मन-मस्तिष्क किसी अज्ञात ज्ञान उपग्रह के सिग्नल से संलग्न हो गया हो। गहराई ऐसी स्थापित हो जाए जैसे संसार का सारा ही ज्ञान आपमें समाहित हो जाएगा। जिसे लोग उदासी कहते हैं वो आपके लिए आनंद और जीवन के सुचारु संचार की अहम आवश्यकता लगने लगे। यह कौन सा वातावरण है? यह कौन से सृजन की उथल-पुथल है? यह कौन सी चीज है जिसमें एक बीज सी बेचैनी भरती जा रही है?

क्या करें जब लगातार आनंद की चेष्टाएं असफल होती जाएं? आनंद भी क्या जीवन का परम लक्ष्य है? फिर दुख किसलिए हैं? फिर उदासी किसलिए है? यह किसी का उद्देश्य क्यों नहीं है जबकि यह सहज प्राप्य है? क्या इनकी सहज उपलब्धता इनका मूल्य कम कर देती है? उदासी भी एक उत्सव क्यों नहीं हो सकती? दुख भी एक त्योहार क्यों नहीं हो सकता? क्यों ऐसा लगता है कि हम दुखी हैं तो यह एक जीवन के प्रतिकूल घटना है? हम उदास हैं तो इससे जीवन का स्वास्थ्य सही नहीं रहेगा?

उदासी हमें गहराई प्रदान करती है। दुख हमें द्रव्यमान देते हैं। हमें सीखों से भर देते हैं। हमें विचारों से परिपूर्ण कर देते हैं। हम सघन हो जाते हैं। गहरे हो जाते हैं। ऐसे में ज्यादा चीजें हममें समा सकती हैं। सुख हमें उथला बनाते हैं। हम जब हंस रहे होते हैं तब चीजों को सतही तौर पर लेते हैं लेकिन संसार ने नियम बना लिया है कि सुख ही सही है। आनंद ही जीवन की अच्छी सेहत का संकेत है। दुख है तो बीमार हो। उदासी है तो मृतप्राय हो। यह तय कौन करे?

अभाव ही जीवन की गति हैं। असंतोष ही ईंधन है जीवन गाड़ी का। अभाव प्रेरित करते हैं। शून्य बनाते हैं ताकि नया जीवन समा सके। यह जीवन रिक्त स्थानों के कदम दर कदम चलने का बिंदुपथ है। हमारी उम्र अभावों की एक यात्रा है। मोशन ऑफ अ वैकेंट प्लेस इज़ आवर लाइफ। अभाव होंगे तो उदासी भी होगी इसलिए उदासी जीवन के आधारों की तासीर जैसी है। यानी कि अगर जीवन का स्थायी भाव कुछ है तो उदासी है। दुख है। ऐसा मेरा मानना है। इसलिए, जीवन में उदासी देने वालों और दुख देने वालों के प्रति कृतज्ञ होना हमारा नैतिक दायित्व है। यही धन्यवाद ज्ञापन हमारी उदासी का उत्सव है।

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