Thursday 27 July 2017

दोहे: जी में आए फूंक दें, गीता और कुरान

दिल्ली से बंगाल तक, लहू-लहू-अंगार।
आर्यवर्त में चल रहा,संस्कृति का श्रृंगार।

ज़हर-ज़हर हर शहर में,नफरत की दुर्गंध।
घर टूटे पर बन रहा, है वैश्विक सम्बंध।।

राष्ट्रवाद बंधक बना,मानवता असहाय।
राजनीति के व्यूह में, मंदिर-मस्जिद-गाय।

संसद की बेचारगी, जन-गण का दुर्भाग।
कैसे हो प्रतिरोध जब, चूनर में है दाग।।

गलियां हैं सहमी हुईं, चौराहे खामोश।।
लुच्चे खोते होश हैं, सरकारें बेहोश।।

'काम' के बदले लाठियां, 'दाम' के बदले मौत।
'जाम' के बदले लोन है, 'नाम' के बदले मौत।

तलवारों की नोक पर, कितने पहलू खान!
इतना सस्ता हो गया, आखिर कब इंसान?

देख तेरे संसार की, क्या हालत भगवान।
जी में आए फूंक दें, गीता और कुरान।

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