Tuesday 28 August 2018

देश में बराबरी का 'प्रधानसेवक' चल रहा है

कम्युनिस्टों से लाख दिक्कत हो लेकिन साम्यवाद तो हमें चाहिए ही। लेकिन चूंकि दिक्कत है, इसलिए हमारा 'साम्यवाद' दूसरे किस्म का होगा। कांवड़िए गाड़ी तोड़ें या हड्डी, उन लोगों को तो बिल्कुल दिक्कत नहीं होना चाहिए जो दलित आंदोलन, मराठा आंदोलन, जाट आंदोलन, करणी सेना धूर्तता के वक्त चुप रहे थे या समर्थक थे। अगर उन लोगों को हड्डी तोड़ने, गाड़ी तोड़ने का अधिकार प्राप्त है तो हमारे 'साम्यवाद' के हवाले से हमको भी अधिकार मिलने चाहिए। हम भी हड्डी इत्यादि तोड़ें। तभी तो बराबरी आएगी न भाई।

हम बहुत जमीन से जुड़े लोग हैं। धरती माता की जय। इसलिए, बराबरी हासिल करने में भी हम ऊपर नहीं देखते। कौन उठे? हां, गिरकर बराबरी करनी हो तो बताओ। देर नहीं लगेगी। गिरने में तो हमारा कोई सानी ही नहीं है। सिरमन कई दफा छज्जन ठाकुर से कह चुके थे, अपनी भैंस को संभालो। रोज हमारे दरवाजे पर गोबर कर जाती है। छज्जन नहीं माने। अगले दिन सवेरे-सवेरे सिरजन छज्जन के दरवाजे को पवित्र कर आए। इस तरह से उन्होंने कर्म में साम्यवाद का परचम बुलंद किया। आदमी तो छोड़िए, उन्होंने जानवर तक के साथ साम्यवाद स्थापित कर दिया। इसे कहते हैं बराबरी।

देश में बराबरी का 'प्रधानसेवक' चल रहा है। प्रधानसेवक तूफान का नया पर्यायवाची है भक्तजनों के मुताबिक। वहीं विपक्ष के मुताबिक झूठ का भी है। खैर, दोनों अपने-अपने हिसाब से समझें। हमें तो अपनी जान बचानी है। दोनों से। लेकिन हां, बराबरी का प्रधानसेवक तो चल ही रहा है। बल्कि इस मामले में वैश्विक प्रतिस्पर्धा है। अमेरिका ने, पाकिस्तान ने भारत का अनुसरण करते हुए यही मार्ग अपनाया था। साम्यवाद का यह नया मार्ग है। गृहमंत्री बोले, 84 से बड़ी मॉब लिंचिंग नहीं कर पाए हम। लेकिन कोशिश कर रहे हैं न। आपने 60 सालों में जो किया हम पांच साल में तो कर ही देंगे। हम समानता लाने के प्रति प्रतिबद्ध हैं।

कांग्रेस ने कहा- कैसे? हमने आजादी की लड़ाई लड़ी। आप ये कैसे कर पाएंगे। भाजपाई बोले - करेंगे, वो भी करेंगे। कार्य प्रगति पर है। पहले पराधीन तो कर दें। फिर हम अपने तरीके से लड़ाई लड़ेंगे। आजादी की। तब आएगी बराबरी। पिछले 60 सालों में देश में बराबरी के तराजू ने हिंदुओं को काफी ऊपर उठा दिया था। उसे ज्यादा से ज्यादा नीचे गिराना है। जनेऊ के धागे के माध्यम से इस अभियान में विपक्ष भी जुड़ गया।

बराबरी का वैभव पूरी तरह से उसके प्रतिद्वंदी में है। कि हम किससे बराबरी हासिल करना चाहते हैं। पाकिस्तान कहता है हम अपनी अर्थव्यवस्था को भारत से आगे ले जाएंगे। भारत कहता है कि पाकिस्तान में फलां लोगों का जीना दूभर है। बांग्लादेश में फलां लोग मारे जा रहे हैं। हम सब बराबर कर देंगे। अपनी श्रेष्ठता या बराबरी दिखाने के लिए हमें दो-चार ही देश याद आते हैं। हमारी समानता की प्रतिस्पर्था उन्हीं से है।

समस्त मीडिया भी आजकल 'अवकरिका' से भरपूर है। नौकरी जाने का खतरा है नहीं तो बता देते कि अवकरिका माने कचरा होता है। लेकिन कुछ लोग लगे थे प्रसून खिलाने में। बार-बार सफाई देना पड़ रहा था। ये कहां की बराबरी है भाई। असमानता तो छोड़िए, आप तो 'भक्ति-भावना' आहत करने लगे थे। बराबरी ऐसे नहीं आती है। आप बराबर में नहीं चलेंगे तो काट के फेंक दिए जाएंगे।

श्रेष्ठता खास लोगों की पैतृक संपत्ति थोड़ी है (बपौती कहना थोड़ा अशिष्ट लग रहा था।) इसलिए, साम्यवाद के प्रति प्रतिबद्ध हम लोगों ने 'अनुसूचित' संस्थानों को भी एमिनेन्स का दर्जा दिया। जनता को हमारी तरह कैमरे पर 'सत्य' बोलने का मौका दिया। उदाहरण के रूप में छत्तीसगढ़ की किसान महिला को देख लीजिए। उसके दोगुनी आय के 'सत्योद्घाटन' से विपक्ष की शक्ल का 'मार्गदर्शक मंडल' हो गया था।

यह अलग तरह के साम्यवाद का दौर है। उन्होंने किया था तो हम कर रहे हैं। वो कर रहे हैं इसलिए हम भी कर रहे हैं। 'तब कहां थे' इस साम्यवाद का ध्येय वाक्य है और तथाकथित 'रक्षा' मूल भाव। इस साम्यवाद से आप इतना गिर सकते हैं कि भूमिगल जल की जगह पर आप स्थापित हो सकते हैं। फिर, बिना 'पानी' वाली दुनिया में उम्मीद के अंकुर कैसे फूटेंगे, पता नहीं।

No comments:

Post a Comment

बनारसः वहीं और उसी तरह

फोटोः शिवांक बनारस की चारों तरफ की सीमाएं गिनाकर अष्टभुजा शुक्ल अपनी एक कविता में कहते हैं कि चाहे जिस तरफ से आओ, लहरतारा, मडुआडीह, इलाहाबा...