Thursday 12 September 2019

प्रेम में नाराजगी की ज़रूरत

तस्वीरः पीयूष कुंवर कौशिक

नाराजगी हमेशा नकारात्मक नहीं है। नाराजगी एक तरह की अभिव्यक्ति भी है। एक संदेश है या एक तरीका है जिससे आप अपनी वे बातें कह सकते हैं जो सामाजिक संबधों के अनुच्छेदों में सैद्धांतिक तौर पर शामिल हैं भी और नहीं भी। ऐसी बातें जिनकी सामाजिक मान्यता पर कई सवाल भौहें चढ़ाए खड़े होते हैं। आप नाराजगी के जरिए अपने उन संदेशों को संप्रेषित करते हैं, जो सिद्धांतों में सही लगते हैं लेकिन व्यवहारिकता में जिन्हें कहने में संकोच है।

प्रेम में नाराजगी
प्रेम में नाराजगी एक अदा है। एक अदाकारी है। नाराज होना और फिर नाराजगी खत्म करने के जतन से प्रेम पुष्ट होने का दावा प्रेम मर्मज्ञों की ओर से किया जाता रहा है। केवल स्त्री-पुरुष प्रेम में नहीं बल्कि किसी भी तरह के प्रेम-स्नेह में नाराजगी की अपनी जरूरत है। नाराजगी की सबसे पहली घोषणा ही यही है कि आपसे प्रेम है। आपसे प्रेम है इसलिए नाराज हैं। दोस्ती की या रिश्तों की नाक में भी कभी-कभी खर-पतवार जाने लगते हैं। नाराजगी एक जोरदार छींक है जो झटक कर ऐसे पतवारों को बाहर कर देती है। यह रिश्तों की कड़वाहटें दूर करने में भी मदद करता है। रिश्तों को डिटॉक्सिफाइ करने वाला ग्रीन टी। कड़वा तो है, तकलीफदेह तो है लेकिन अगर पी ले गए, संभाल लिया सही से तो संबंधों की सेहत भी दुरुस्त होगी।

नाराजगी का जवाब
लेकिन इन सबकी कुछ शर्तें हैं। किसी की नाराजगी को ठीक तरीके से बरतने का हुनर आना चाहिए। यहां अगर लापरवाही हुई या अहं बीच में आया तो वह सब कुछ खत्म हो सकता है जिसे बड़ी आसानी से बचाया जा सकता था। पहली शर्त ये कि नाराजगी का जवाब कभी नाराजगी नहीं हो सकता। खासकर उसके लिए जिसे आप चाहते हों। जिससे प्रेम करते हैं। प्रेम में प्रतिकार तो होता ही नहीं है। दूसरी शर्त यह कि किसी की नाराजगी को ज्यादा देर तक के लिए छोड़ नहीं सकते। इससे उस पर दुनिया भर की गलतफहमियों, आशंकाओं और कड़वाहट के कीटों का डेरा जमने लगता है। यह आपके रिश्ते को बीमार बना सकता है, जिससे उसकी मौत भी हो सकती है। और इन सबसे ज़रूरी शर्त यह कि नाराजगी को स्वीकार करें। उसकी उपेक्षा कम से कम कभी न करें। नाराजगी को बहलाकर टाल देना रिश्तों के लिए सबसे घातक हो सकता है।

इक्विलिब्रियम के लिए नाराजगी
दो मन कभी एक जैसे नहीं हो सकते। मनांतर को समतल करने की प्रक्रिया ही नाराजगी है। हम एक दूसरे के साथ इक्विलिब्रियम में आना चाहते हैं इसलिए नाराजगी होती है। इसका उद्देश्य निःसंदेह पवित्र है इसलिए इसका सम्मान भी होना चाहिए। नाराजगी के सम्मान की जरूरत मैं सबसे ज्यादा समझता हूं। मेरे साथ इसका बुरा अनुभव रहा है। मुझे हमेशा से लगता है कि मेरी नाराजगी का किसी ने सम्मान नहीं किया। इसका कारण यह भी हो सकता है कि मैं कई बार अकारण (लोगों की नजर में) नाराज हो जाता हूं। कई बार मैं अपने प्रिय लोगों में अपनी कीमत महसूस करने के लिए भी नाराज हो गया हूं। ऐसे वक़्त में जब नाराजगी का सम्मान नहीं होता तो मन में घृणा भी भरने लगती है।

नाराजगी का सम्मान
अपनी गलती मान लेना कोई बड़ा अपराध नहीं है। मैंने अपने जीवन में हमेशा कोशिश की है कि अगर कोई मुझसे नाराज है तो उसकी नाराजगी का सम्मान करूं। मैंने किया भी है। हालांकि, नाराजगी जाहिर करने वाले भी कम ही रहे हैं लेकिन जितने भी रहे हैं मैंने कोशिश की है कि उनकी नाराजगी को सही तरीके से दूर किया जाए। मतभेद भुला दें उस वक्त पर। बीच में अभिमान न लाएं। हो सकता है मैं हमेशा से ऐसे न रहा होऊं लेकिन मेरे साथ कई बार ऐसी घटनाएं घटीं कि मुझे यह चीज सबसे जरूरी लगने लगी।

आपबीती
मां से नाराज होता तो जिद कर लेता कि जब तक उन्हें यह नहीं लगेगा कि उनकी गलती थी, मेरी नहीं, तब तक मैं उनसे बात नहीं करूंगा। कई बार मां को पता ही नहीं होता कि मैं उनसे किस बात पर नाराज हूं। मेरी भी जिद कि बताऊंगा नहीं। ज्यादातर बार तीन-चार दिन में मामला सामान्य हो जाता और बातचीत की प्रक्रिया बहाल हो जाती। इस बीच मां अगर मनाने की कोशिश नहीं करतीं तो गुस्सा बढ़ता जाता था। कई बार खाना-पीना छोड़ दिया। मां छटपटाहट के स्तर पर परेशान हो जातीं लेकिन मैं नहीं बताता कि बात क्या है? किसलिए नाराज हैं?

स्थायी रिक्ति
ऐसे ही किसी मामले पर नाराजगी ऐसी बढ़ी कि मैंने अपने जीवन का सबसे बड़ा नुकसान कर लिया। मां से नाराज होना अपने आप में एक बड़ी विपदा है। मैंने तो इस नाराजगी को स्थायी बना दिया। सिर्फ अपनी जिद और अपने गुस्से की वजह से। विश्लेषण हो तो शायद मेरी ही गलती सामने आए लेकिन यह प्रवृत्ति रही और अब भी है। यह मेरा निजी नुकसान है। भावनात्मक स्तर पर आज भी एक रिक्ति है, जिसे अब मैं चाहते हुए भी भरना नहीं चाहता। शायद यह नाराजगी अब स्थायी हो गई है।

अप्रभावना का अभिनय खतरनाक
खैर, ऐसे अनेक मामले हैं परिवार में ही। बाहर भी। कई मित्रों से जो बातचीत छूटी वह आज तक बहाल नहीं हो पाई। इनमें से कई घनिष्ठ दोस्त रहे। भावनात्मक आशावाद का यह चरित्र मुझे लगातार तबाह करता रहा है। खैर, इन सब अनुभवों में मैं जो सबसे जरूरी चीज महसूस करता हूं वह यही है कि जो आपसे प्यार करता है उसकी नाराजगी का सम्मान कीजिए। बहुत सी समस्याएं बस इसी से सुलझ जाती हैं कि आपने उसकी नाराजगी को संज्ञान में लिया। अपने करीबी की नाराजगी पर अगर आप अप्रभावित होने का प्रदर्शन कर रहे हैं तो यह युद्ध के ऐलान जैसा है। यह उस नाराजगी के अपमान जैसा है जिसकी जड़ में आपसे अथाह प्रेम है और आपसे अनेक आशाएं हैं।

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