Sunday 31 December 2017

स्वगत क्रांति में बीज निहित हैं विश्वक्रान्ति के


एक नम्बर को लेकर भावुकता अच्छी है क्या! पता नहीं, लेकिन हो ही जाती है। आखिरी महीने के आखिरी हफ्ते से गिनती गिनना शुरू। साल का 'आखिरी' ये, साल का 'आखिरी' वो। साल की शुरुआत में गिनना कि 'पहला' ये, 'पहला' वो ..!! सब एक अजीब सा संतोष देता है।

नया तो कुछ होता ही नहीं है। एक तारीख बदलती है और कैलेंडर से नएपन की घोषणा हो जाती है, लेकिन क्या ऐसा होता है कि 31 दिसम्बर की रात 11 बजकर 55 मिनट से चल रहा किसी का कोई विवाद 1 जनवरी को 12 बजकर 1 मिनट पर अचानक बन्द हो जाए। लोगों की भावनाएं नयी हो जाएं, विचार बदल जाएं। बहुत मुश्किल है, लेकिन फिर भी... हम कोशिश तो करते हैं कि हमारे इमोशन्स नये साल की नदी में नहाकर तरोताजा हो लें।

बदलता कुछ भी नहीं। सिवाय साल के। साल चूंकि वक़्त का एक मात्रक है इसलिए उसे तो रुकना है ही नहीं। हमने एक अनवरत धारा के कई हिस्से कर दिए हैं। ताकि जीना आसान हो जाए। एक छोटा सा विराम फिर नयी यात्रा के लिए नए नियम, नयी ऊर्जा और नए संकल्प। पुरानी बुरी आदतों से छुटकारा पाने का एक बहाना। नयी आदतों को आदत में शामिल करने की अयोजन-तिथि। नया साल इसी मन्तव्य का प्रतिनिधि-दिवस है।

रिजॉल्यूशन्स दरअसल रिवॉल्युशन की सबसे छोटी ईकाई है। ये आत्मसत्ता के खिलाफ एक छोटी सी क्रांति होती है, इसलिए जैसे 'स्वगत शोक में बीज निहित हैं विश्वव्यथा के'... ठीक उसी तरह 'स्वगत क्रांति में बीज निहित है विश्वक्रान्ति के।' मुझे याद है पिछले साल हमने एक रिजॉल्यूशन लिया था और कहा था कि 'अमरबेल बनना जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है।' अपने इस रिजॉल्यूशन में बेहद कम मात्रा में ही सही मुझे सफलता दिखती है। मैं आज एक साल बाद इस दिशा में थोड़ा अन्तर देखता हूँ, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इसी से काम शायद नहीं चलने वाला है। इसका विस्तार चाहिए, इसलिए जब तक संतोषजनक सफलता न मिले मैं नया संकल्प लेने के बारे में नहीं सोच रहा।

मैं किसी रेस का हिस्सा नहीं बनना चाहता। मुझे कोई जल्दी नहीं है। मैं धीरे-धीरे ही आत्मसुधार की सीढ़ियां चढ़ना चाहता हूँ। अपनी ही रफ्तार से। क्योंकि रफ्तार विस्तार की गारन्टी नहीं है। दुर्घटनाओं की संभावना का बीज है। प्रक्रियागत सुधार दीर्घकालिक परिणाम देते हैं, ऐसा मुझे लगता है।

पिछले अधूरे काम के साथ मुझे इस साल एक नया काम भी अपने लिए निश्चित रखना है। इस दिशा में भी काम करना बेहद जरूरी है। कोशिश होगी कि मजबूत बन सकें। बड़ा मुश्किल होगा लेकिन हवाओं के झोंकों से तहस नहस होने से बचना है तो थोड़ी सख्ती शाखों में आनी ही चाहिए कि हवा रगड़कर पार हो जाए लेकिन अस्तित्व को रौंद न पाए, क्योंकि मेरे लिए रौंदा जाना सबसे ज्यादा खतरनाक चीज होती है।


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