Thursday 4 January 2018

क्योंकि आग से आग नहीं बुझती, पानी से ही बुझती है

गरम मुद्दों का समाधान गरम होने से नहीं ठंडे दिमाग से सोचकर मिलेगा, क्योंकि आग से आग नहीं बुझती, पानी से ही बुझती है।

गर्व करने के लिए हम कब तक इतिहास की जमीन को सजाते फिरेंगे। इतिहास सबक से ज्यादा अब विवाद का विषय बनता जा रहा है। पता नहीं, भविष्य और वर्तमान के लिए इतिहास की कितनी जरूरत है लेकिन जिस तरह से इतिहासों का हथियार विखंडन, विद्वेष और वैमनस्य को बढ़ावा दे रहा है, इसकी तमाम जरूरतें व्यर्थ लगती हैं।

विवादों की जड़ इतिहास है। ब्राह्मणों का इतिहास, दलितों का इतिहास, मराठाओं का इतिहास, पेशवाओं का इतिहास, राजपूतों का इतिहास आदि आदि। सारे इतिहास अपने हिसाब से व्याख्यायित हो रहे हैं। सही-गलत से किसी को कोई मतलब नहीं है। गौरवशाली इतिहास में गौरव का अतिरेक, दमनशाली इतिहास में दमन का अतिरेक। इतिहास-पुरुषों के गलत आचरण शौर्य-कथाओं की तरह प्रचारित किए जा रहे हैं। उसे गौरवशाली बताया जा रहा है। गले कट सकते हैं इसके लिए। अब बैठकर सोचिए कि वर्तमान को क्या दे रहा है इतिहास।

हर किसी के इतिहास की अलग-अलग जमीन है। इस जमीन की सीमाओं पर टकराव का खूनी हो जाना उतना भयानक नहीं है जितना इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन है। कुछ लोग हैं जिन्हें अपनी जमीनों के अलावा दूसरे की जमीनों की गतिविधियों की निगरानी की स्वतःप्राप्त ठेकेदारी है, लेकिन स्वजाति का अभिमान-बोध अनावश्यक घमंड में न बदले यह भी तो एक सामाजिक चिंता है। सहानुभूति कहीं किसी के अनैतिक कृत्यों को समर्थन न देने लगे।

सामाजिक समरसता स्थापित करने के लिए दिल बड़ा करना होगा। सब कुछ सही हो जाएगा अगर आप मानवता को वरीयता देंगे। मानवता की कसौटी पर कसिए अपने जातीय स्वाभिमान को। जो-जो विधान इस कसौटी पर फेल हैं, उन्हें अपने संविधान से निकाल फेंकिए। वर्तमान समस्याओं की ऐतिहासिक मर्ज के आधार पर चिकित्सा की जाएगी तो परिणाम और भी तनावपूर्ण होंगे ही। यह सही है कि इसके इलाज में इतिहास को पूरी तरह से नहीं छोड़ सकते, लेकिन जख्म की दवा जख्म को कुरेदकर देने से बेहतर है कि उस पर आराम से कोई औषधीय लेप लगाया जाए।

इस लेप का भी विरोध करने वाले हो सकते हैं। यही विरोधी हमारी असल चुनौती हैं। इन्हें लक्ष्य बनाकर समूचे समुदाय पर तीर छोड़ना क्या सही है? समुदाय विशेष में पैदा होना अपने वश में नहीं है। इसलिए एक समुदाय विशेष में पैदा हुए व्यक्ति पर उसकी जातीय अस्मिता को लेकर मोरल प्रेशर से उपजा अवसाद भी उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण है जितना कि किसी अन्य शोषित समुदाय विशेष में पैदा हुए व्यक्ति का जातीय आधार पर शोषण। अभिषेक ने बड़ी अच्छी बात कही है। कट्टरता से कोई नहीं बच पा रहा है। कट्टरता बुरी है ये सब लोग मानते हैं। लिबरल्स में अपने लिबरलपन को लेकर कट्टरता और कट्टरता के विरोधियों में अपने कट्टरतारोधी प्रवृत्ति को लेकर कट्टरता हावी है।गरम मुद्दों का समाधान गरम होने से नहीं ठंडे दिमाग से सोचकर मिलेगा, क्योंकि आग से आग नहीं बुझती, पानी से ही बुझती है।

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