Friday 10 February 2017

फिर लौटेगा प्रवचन वाला बसंत!

संसद में विपक्ष का सत्ता का विरोध करने का तरीका और सास-बहू में होने वाले झगड़े,इन दोनों में अगर आप अंतर निकाल ले गए,तो समझिये भौतिकी और रासायनिकी दोनों का नोबल पुरस्कार पक्का।
सारी बहस,सारे विरोध,सारी नौटँकी एक ऐसे मुद्दे के आस-पास सिमटकर रह जा रही है,जिसके सॉल्व हो जाने से न तो वैश्विक पटल पर हिन्दुस्तान चमकने ही लगेगा,और न तो किसी झोपड़ी की ठण्डे-बुझे चूल्हे में आग ही जल पाएगी।
'रेनकोट' बयान पर इतना हंगामा क्यों हो रहा है!पता नहीं।शायद यह दिखावा करने की कोशिश हो कि भारतीय संसद इस तरह के 'असभ्य' बयानों के प्रति बहुत ज्यादा 'असहिष्णु' है,वो इस तरह के शब्दों को कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता।लेकिन भाई!सड़क पर जो 'ज़ाहिल' दरी बिछाकर सोया है न,जिसे नेतई भाषा में 'जनता' कहते हैं,वो जब इन तथाकथित 'परम विद्वानों' के बयानों के 'शीशमहल' देखता है न,तो दोनों के घरों के शीशे एक दूसरे के पत्थरों से फूटे हुए दिखाई पड़ते हैं।
बन्द कर भाई ई सब!क्या संसद और क्या संसद की मर्यादा!क्या प्रधानमन्त्री और क्या प्रधानमन्त्री की गरिमा!लोकतंत्र को रोज़ ज़लील करने वाले लोगों से लोकतांत्रिक प्रतिष्ठानों की इज़्ज़त करने की उम्मीद करने से अच्छा है,गधे के सर पर सींग खोजो!
अउर हाँ!रोज शाम को टीवी पे 'प्राइम टाइम' में 'ताल ठोक के दंगल' देख देख के मज़ा लेने की बजाय आप सब अपना अपना काम करो,और उनको भी करने दो।आप सब से भी अब कुछ होने से रहा।चुनाव का मौसम है,अपने आदर्श,अपने सिद्धांत और अपनी आत्मा के पत्ते झाड़ डालो इस पतझड़ में।और ऐसे ही प्रतिष्ठित,मर्यादित,गरिमामयी लोगों को स्थापित कर देना फिर,मर्यादा और गरिमा की रक्षा के लिए।उसके बाद तो कर्तव्य,आदर्श,अधिकार पर बहस,प्रवचन और ज्ञान के नए पत्ते आएंगे ही,किसी और 'गरिमामयी' के कार्यकाल में,बसन्त की तरह।😑😐

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