Saturday 11 February 2017

कविताः अधर तुम्हारे भूल गए थे...


पल भर पतझर क्या आया,था टूट गया उद्यान।
अधर तुम्हारे भूल गए थे,फूलों सी मुस्कान!

निशा ओढ़ तम-शीत-सितारे,शीतल वायु प्रवाह।
एक एक कर गिरे पात सब,ढाँक लिए थे राह।
समय पथिक सा चला कुचलता,उनके पीले पात।
रहा झेलता बुरे दौर की,वृक्ष घात पर घात।
यूं टूटी थी हिम्मत उनकी,यूं टूटी थी आस।
खत्म हो गया था तरु तन में,जीवन का आभास।
रुका नहीं संघर्ष,थपेड़े सहे,करम में लीन।
हिम्मत हारी नहीं वृक्ष ने होकर धैर्यविहीन।
एक दिवस ऐसा भी आया महक उठा संसार।
पल्लव फूटे नवल,बाग़ में आई लौट बहार।

किया ज्योति की तम पर जय का स्थापित प्रतिमान।
अधर तुम्हारे भूल गए थे फूलों सी मुस्कान।
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
राघवेंद्र शुक्ल

No comments:

Post a Comment

बनारसः वहीं और उसी तरह

फोटोः शिवांक बनारस की चारों तरफ की सीमाएं गिनाकर अष्टभुजा शुक्ल अपनी एक कविता में कहते हैं कि चाहे जिस तरफ से आओ, लहरतारा, मडुआडीह, इलाहाबा...