Sunday 27 October 2019

अंधेरे के खिलाफ युद्ध नहीं दीपावली

तमसो मा ज्योतिर्गमय!

उन्नति की प्रक्रिया में तम से ज्योति की ओर बढ़ना होता है। इसमें हर एक पड़ाव अपने आगे वाले के लिए तिमिर है और हर पड़ाव अपने पीछे वाले के लिए ज्योति। तम या अंधकार कोई एक निश्चित बिंदु या अवस्था नहीं है। हम हर दिन, हर पल तम से ज्योति की ओर आगे बढ़ने के अभियान में हों, यही दीवाली का संदेश है।

जीवन को एक युद्ध की तरह लेने वाले लोगों ने अंधकार को शत्रुपक्ष के एक सैनिक की भांति प्रोजेक्ट किया है। हालांकि, अंधेरा इतना बुरा नहीं है। सबसे पहले तो तम या तिमिर या तीरगी या अंधकार हमारा दुश्मन नहीं है। इसलिए उसके खिलाफ युद्ध छेड़ने या उस पर विजय प्राप्त करने की घोषणाएं दुनिया की सबसे भ्रमित योजना का हिस्सा हैं।
अमावस का अंधकार एक शान्ति लेकर आता है। ऐसी अद्भुत शान्ति आपको कहीं देखने-महसूसने को नहीं मिलेगी। आप ज़रा बारीकी से महसूस करेंगे तो पाएंगे कि प्रकाश में एक तरह का शोर है। अमावस में इस शोर की शांति है। कार्तिक की अमावस्या विशेष है। इस शांति में हमने हल्के प्रकाश का साहचर्य चुना है। यह साल में अकेला ऐसा अवसर होता है जब अंधेरे को प्रकाश का सही मायने में साथ मिलता है। यह दोनों के प्रेम और संगम की बेला होती है। अंधेरे और प्रकाश के प्रणय का अवसर। बाकी तो, प्रकाश के हमारे सारे जतन अँधेरे के खिलाफ युद्ध छेड़ते ही दीखते हैं। इतना भी बुरा नहीं होता अंधेरा भाई।

दीपावली को हमने प्रकाश पर्व बना लिया। यह पड़ता तो अमावस को है। श्वेत प्रकाश का पूजन और कृष्ण अन्धकार का तिरस्कार हमारी नस्लीय सोच के सिलसिले में भी आता हुआ माना जा सकता है। जहां श्वेत सुन्दर है। कृष्ण कुरूप। भयानक। दीपावली में प्रकाश ही प्रधान है लेकिन प्रकाश का अस्तित्व ही अंधेरे से है। अंधेरा इतना विनम्र और सुलभ है कि वह वहां भी होता है जहाँ वातावरण नहीं पाया जाता। आप उदाहरण के तौर पर अंतरिक्ष के निर्वात पर सोच सकते हैं।

खैर, दीपावली पर अंधेरे का पक्ष रखना खतरे से खाली नहीं है लेकिन यह उसका अधिकार है कि उस पर बात हो। मौजूदा बौद्धिक चेतनाओं में यह उत्सुकता काफी देखी जाती है कि यह प्रयास हो कि अंधेरे को ख़त्म कर दिया जाए। इस क्रम में अँधेरे पर प्रकाश के विस्फोट का चलन बढ़ा है। हम बीसियों बल्ब जला लेंगे। उच्च विभवान्तर के। अंधेरे का निशान न रह जाए। सर्वत्र उजाला हो। सर्वदा उजाला हो। दिन-रात, 24 घंटे प्रकाश हो। अंधेरे को शत्रुपक्ष का बेड़ा समझकर हर कोई सर्जिकल स्ट्राइक करने पर तुला है।

यह प्राकृतिक तो नहीं है। लेकिन यह आधुनिकता का दौर है। विकास का मौसम है। सभ्यता के उत्कर्ष का आयोजन है। अप्राकृतिक होते जाना अब मानव सभ्यता का नया शौक बन गया है। प्राकृतिक तो यह है कि हम अंधेरे को बरतें। उसे बहिष्कृत न करें। पास्तान की एक कविता के अनुवाद में रीनू तलवाड़ की लिखी यह पंक्ति है कि

"जब ईश्वर ने कहा
उजाला हो
तब अंधेरे को बहिष्कृत तो नहीं किया।"

उपर्युक्त वेद श्लोक में भी ऐसा नहीं लिखा कि अंधेरे को समाप्त कर दिया जाए। वहां भी कहा गया कि तम से ज्योति की ओर चलें। वैसे ही, मृत्यु से अमरता की ओर चलें। मृत्यु तो प्राकृतिक है। वह होना ही है। वह अपरिहार्य है। अमरता उपलब्धि है। प्रकाश प्राप्य है। सत्य उद्देश्यणीय है। इसलिए, दीपावली प्रकाश को प्राप्त करने की चेष्टा है। अंधकार को मारने का उपक्रम नहीं।

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