Sunday 16 April 2017

‘हमारे पास अब खोने के लिए कुछ नहीं’

आधा सर और मूंछ मुंडवाया हुआ एक किसान
वो कभी सर के बाल मुँड़वाते हैं,कभी हथेली काटकर रक्ताभिषेक करते हैं।कभी पीएमओ जाकर नग्न होकर किसानों को बचाने की गुहार लगाते हैं तो कभी जंतर-मंतर पर साड़ी पहनकर विरोध प्रदर्शनों के इतिहास में नए किस्म के प्रदर्शन का अध्याय भी लिखते हैं।तमिलनाडु और दिल्ली के बीच की पांच राज्यों की दूरी तय करके तमिल किसान जंतर-मंतर पर अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करने सिर्फ इसलिए आ गए कि यहां से शायद देश की सर्वोच्च सत्ता के कान थोड़े नजदीक होंगे,शायद यहां से उनकी बात थोड़ी आसानी से सरकार को सुनाई दे जाए।प्रदर्शन करते लगभग एक महीने बीत गए।विपक्षी दलों के कुछ नेताओं,कुछ दक्षिण भारतीय सिनेमा के अभिनेताओं और कुछ क्षेत्रीय मीडिया चैनलों के कुछ रिपोर्टरों के अलावा सरकारी महकमें से जुड़े किसी भी अधिकारी,मंत्री,सांसद या विधायक को अब तक किसानों से मिलने तक के लिए फुर्सत नहीं मिल पायी है।
प्रधानमंत्री को प्रतीकात्मक रक्ताभिषेक करते किसान
दिल्ली का जंतर-मंतर लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रतिरोध और प्रदर्शन की संस्कृति के पावन तीर्थ जैसा बन गया है।2011 में भ्रष्ट शासन-व्यवस्था से आजिज आ चुके लोगों की एकजुटता और जनतंत्र में जन की शक्ति के परिणाम की गवाही देने वाले इसी जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के त्रिचिरापल्ली से 61 साल की नाचम्मा भी आयीं हैं,जो पढ़ी-लिखी तो नहीं हैं,लेकिन संविधान में प्रदत्त अपने अधिकारों के लिए लड़ने के तरीकों को बखूबी समझती हैं।14 मार्च से शुरु हुए प्रदर्शन में पहले ही दिन से शामिल नाचम्मा के दो बेटे हैं,दोनों की शादी हो चुकी है।पोते-पोतियां भी हैं।खेत में फसल बोने के चक्कर में लिया गया कर्ज 3 लाख से सात लाख पहुंच चुका है।घर के सारे कीमती जेवर बिक चुके हैं।गले में पड़े एक धागे के गांठ वाले छोर की ओर दिखाते हुए नाचम्मा बताती हैं कि कर्ज चुकाने के चक्कर में सुहाग का प्रतीक मंगलसूत्र भी बिक गया है।अब उनके पास कर्ज चुकाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है सिवाय इसके कि वो अपने खेत बेच दें।खेत बेचकर कर्ज चुकाने के सवाल पर भावुक होकर वह बताती हैं कि वही उनकी आखिरी पूंजी है जिसे वह अगली पीढ़ी को सौंप कर जाएंगी।अगर खेत भी बिक गया तो उनके पास उनके बच्चों को देने के लिए कुछ न बचेगा।चंचल बचपन की दहलीज पर खड़े अपने नातियों को वहीं गांव की मिट्टी पर खेलते छोड़कर आयीं नाचम्मा की हैरान-परेशान और दुखी आंखें यह बताते हुए भर आती हैं कि वह घर तब तक नहीं लौट सकतीं जब तक वह कर्ज की समस्या का समाधान नहीं ढूंढ लेतीं।ऐसा करने को उनसे उनके बच्चों ने भी कहा है और उनकी अपनी भी मंशा यही है।यह पूछने पर कि यहां अगर कोई समाधान नहीं निकलता तो वह क्या करेंगी,उन्होने जो जवाब दिया वह उनकी पीड़ा और हताशा का चरमबिंदु था।उन्होने कहा कि वह यहां से खाली हाथ वापस लौटने की बजाय जहर खाकर अपनी जान दे देंगीं।कर्ज देने वाले बैंकों की भाषा भी गुण्डो की भाषा से ज्यादा अंतर नहीं रखती।नाचम्मा के अनुसार बैंक वालों ने कर्ज वसूलने के नाम पर उनसे बड़ी ही अभद्रता से बात की।बैंक वालों की क्रूर भाषा में उनसे अपनी बेटी बेचकर कर्ज चुकाने को कहा गया।बैंक ने यहां तक यह भी कहा कि कपड़े क्यों पहनते हो,खाना क्यों खाते हो।शायद उनकी नजर में इंसान का भूखा-नंगा रहना बैंकों के कर्ज से ज्यादा असामान्य घटना नहीं है।
54 साल के तमिल किसान सेल्वराज के साथ भी ऐसा ही कुछ है।2007 में ट्रैक्टर खरीदने को लेकर बैंक से लिए गए 6 लाख रुपए में से तीन साल में तीन लाख तक कर्ज चुका देने के बाद भी बैंक वालों से उन्हे गालियां और मार-पीट की धमकी सुनने को मिली।सेल्वराज बताते हैं कि सूखे की वजह से सारी फसल बरबाद हो गयी।गाय का दूध बेचकर किसी तरह से घर का खर्चा चलता है।लेकिन बैंक वालों के दबाव और कर्ज चुकाने का कोई और रास्ता न होने के कारण हमें यहां आकर सरकार से मदद मांगना पड़ रहा है
सेल्वराज
भारत में कुदरत की मार से परेशान किसानों के किस्से नए नहीं हैं।1990 में द हिंदू के ग्रामीण मामलों के पत्रकार पी.साईंनाथ ने किसानों के आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं की ओर ध्यान आकृष्ट कराया था।उसके बाद से किसानों के आत्महत्या की घटनाएं लगातार सुर्खियों का हिस्सा बनती रहीं।इनमें से ज्यादातर किसान खेती के लिए बैंकों से कर्ज लेते हैं और फिर मौसम की मार से फसल के बरबाद हो जाने पर कर्ज चुका पाने का कोई रास्ता न देख अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या जैसा बड़ा और आखिरी कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं।भारत में किसानों की आत्महत्या से प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र,कर्नाटक,पंजाब,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश और अब तमिलनाडु शामिल हैं।कहा जाता है कि भारतीय कृषि इंद्रदेव की कृपा से संचालित होती है।कभी कम वर्षा तो कभी हद से अधिक वर्षा,कभी ओले तो कभी सूखा,भारतीय कृषि में प्रयोग आने वाले ये शब्द कभी-कभी हताश किसानों की जीवनलीला पर आत्महत्या की आखिरी मुहर लगा देते हैं।2001 और 2011 की जनगणना ने देश में किसानों की संख्या में भारी गिरावट होने का संकेत किया है।एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर महीने तकरीबन 70 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर रहे हैं।ताजा मसले को ही लें तो जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे तमिलनाडु के किसानों के नेता पी.अय्याकन्नू बताते हैं कि तमिलनाडु में पिछले चार महीनों में तकरीबन 400 किसान सूखे के कारण फसल बरबाद होने और बैंकों के कर्ज न चुका पाने के कारण मौत का रास्ता चुन चुके हैं।
प्रदर्शन के दौरान प्रतीकात्मक अर्थी निकालते किसान
कृषि उद्योग में मुनाफे की संभावना भाग्य भरोसे होती है।देश के लगभग 40 फीसदी किसान कृषि के अतिरिक्त कोई और विकल्प न होने के कारण खेती करते हैं।कृषि क्षेत्र में चुनौतियां बहुत हैं।फसलों की बुआई से लेकर कटाई तक और उसके बाद उसे बाजार तक पहुंचाने तक में किसान जिन स्थितियों से दो-चार होता है उसे वही समझ भी सकता है।फसलों को उसकी उचित कीमत मिल जाना भी किसानों की बड़ी चुनौतियों में से एक है।कुल मिलाकर खेती में मुनाफे की संभावना बहुत कम और नुकसान की उतनी ही ज्यादा होती है।2001 की जनगणना की रिपोर्ट बताती है कि इन्ही सारी समस्याओं से हारकर तकरीबन 70 लाख किसानों नें किसानी छोड़ दी।आज यह संख्या और बढ़ी ही है।एक कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले किसी देश में किसानों की गिरती संख्या उस देश के लिए भविष्य में भयंकर आर्थिक संकट की आहट है।यह समस्या इतनी बड़ी है कि इस समय देश की प्रशासनिक व्यवस्था की नीतियों में कृषि और कृषकों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।लेकिन यहां तो तसवीर ही कुछ अलग है।सत्ता से जुड़े लोगों का कृषि और कृषकों की समस्या में कोई दिलचस्पी नहीं है।शमशान-कब्रिस्तान-राष्ट्रवाद-गाय-हिंदू-मुस्लिम ये वो मामले हैं जिनमें न सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले नेता बल्कि सारा देश और सारा मीडिया अपना सर खपाने में लगा हुआ है।
प्रदर्शन के अगुआ पी.अय्याकन्नू
राजधानी की सड़कों पर आपको बहुत सारे हरे वृक्ष मिल जाएंगे,लेकिन जंतर-मंतर पर एक ऐसा भी हरा वृक्ष है जिस पर खाकी मिट्टी को फसलों के हरे परिधान से ढक देने वाले एक धरती पुत्र ने अपने जीवन की सारी विवशता,सारी दुविधा और सारी पीड़ा का शोकगीत लिख दिया था।किसानों की समस्या को लेकर आम आदमी पार्टी के एक प्रदर्शन में शामिल होने आए पंजाब के एक किसान ने जिस पेड़ की टहनियों से लटककर अपनी जान दे दी थी आज उसी हरे वृक्ष की छाया में जाती सड़कों के एक छोर पर हरे रंग का अधोवस्त्र पहने सर मुँडाए कुछ किसान राष्ट्रीयकृत बैंकों से लिए गए उनके कर्जे को माफ करने,सूखे की वजह से बरबाद फसलों का मुआवजा देने की मांग को लेकर महीने भर से प्रदर्शन कर रहे हैं।उनके साथ कुछ नरमुण्ड भी हैं जो तमिलनाडु में बीते दिनों आत्महत्या किए किसानों के बताए जा रहे हैं।ये केवल कुछ नरमुण्ड भर नहीं हैं,बल्कि ये उन किसानों की आगे की लड़ाई है जो उनकी मौत के बाद भी जारी है।बदलते विश्व में किसानों की सदियों से अपरिवर्तित समस्याओं के लिए ये उनका संघर्ष है जिससे वो कृषकों की नयी पीढ़ी की राह से दिक्कतों के कांटे कम करने के लिए कर रहे हैं।
मृत किसानों के कपाल

जंतर-मंतर पर किसानों ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है।पी.अय्याकन्नू अपना सब कुछ दांव पर लगाए किसी योद्धा की तरह कहते हैं कि हमारे पास अब खोने के लिए कुछ नहीं है,हम यहां से या तो अपनी समस्या का हल लेकर जाएंगे और फिर हल थामेंगे या फिर अगर यही स्थिति भविष्य में भी रही तो इन्ही समस्याओं की लड़ी जाने वाली लड़ाई के लिए नरमुण्डों की गिनती और बढ़ाकर जाएंगे।अब सरकार को यह तय करना है कि वह क्या चाहती है।एक देश जहां पर अरबों-खरबों का आईपीएल टूर्नामेंट खेला जाता हो,एक देश जिसके वातावरण में आजकल बुलेट ट्रेन के दौड़ाए जाने के सपने तैर रहे हों,एक देश जहां पर एक उद्योगपति के अरबों रुपयों के कर्ज माफ कर दिए जाते हों,एक देश जहां के एक दूसरे उद्योगपति के पास बैंक का कर्ज उतारने के लिए पैसे नहीं हों और वह हजारों करोड़ रुपए का ग्रांड प्री. रेसिंग टूर्नामेंट करवाता हो और 9 हजार करोड़ का कर्ज चुकाने की बजाय देश छोड़ देता हो,एक ऐसा देश जहां एक अंतर्राष्ट्रीय आयोजन कराने के लिए हजारों करोड़ रुपए पानी की तरह बहा दिए जाते हों उस देश में एक किसान महज 50 हजार रुपए का कर्ज न चुका पाने के कारण अपना जीवन खत्म कर लेता हो तो उस देश के लिए इससे बड़ी त्रासदी और कुछ नहीं हो सकती।अब इस समस्या और इसके समाधान पर गंभीर चिंतन करना न सिर्फ सत्ता का बल्कि समूचे राष्ट्र की चिंतनशील जनता का नैतिक-सामाजिक और राजनैतिक कर्तव्य है।स्मार्ट शहर के इस दौर में बेबस स्मार्ट गांव की संभावना जंतर-मंतर पर सेल्वराज के उस कथन को एक व्यंग्यपूर्ण मुस्कान के साथ कह जाती है कि हमें खाना चाहिए,खाना खेत से आएगा और खेतिहर किसान सड़क पर है।भूखा,विवश,हारा हुआ और अब तो नंगा भी।

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