Wednesday 18 January 2017

कविताः रहना सदा ही 'हर्षिता'



'पथ' कोई भी ज़िन्दगी में
ना कठिन है,ना सरल है,
बस ज़रा विश्वास-साहस-धैर्य
इच्छाशक्ति को
मन के बगीचे में
लगाना-सींचना-मजबूत करना।
ले लिया जो फैसला तो
कोई कारण हो मगर
बढ़ते हुए अपने कदम
मत रोकना-मत थामना।
रहना सदा ही 'हर्षिता'
निज ज़िन्दगी के देश पर
'दिल' का स्वयं 'अभिषेक' कर।
कि दीप्त हो उठे 'मयंक'
यश को, 'प्रगति' को देखकर।
तू उड़ चला चल पर पसारे,
है पुकारे
नील नभ का नील 'आँचल'।
तू स्वयं के विश्व का
दिनकर बने, 'शशांक' भी।
'अंकित' करे अपनी कथा
इतिहास के परिधान पर।
खुद को,प्रथम,पहचानकर,
निज 'रुचि'-क्षमता जानकर।
विश्वास की 'ज्योति' जला,
बढ़ चल अभय हो राह पर।
सब मुश्किलें आसान हों,
जीवन में ‘परमानंद’ हो।
'करूणानिधि' की हो कृपा
सब हो सुखद,सब हो भला।
मुस्कान,चेहरे की हँसी,
बहती रहें जीवन में खुशियाँ।
प्रभु से हमारी प्रार्थना
जीवन की राहों में तुम्हारा
दुःख से,निराशा से कभी
डर से,हताशा से कभी-
भी हो ना पाये सामना।
इस गाँव की मिट्टी-हवा
सब खेत,घर के सामने
ऊँचे खड़े शीशम,
गुलाबों की कतारें,नीम-गुड़हल
और अमरूदों की श्रेणी,
बेल,तुलसी,रातरानी
छत के इक कोने का वो
छोटा सा देवस्थान
हैं चढ़ते जहां पर फूल-अक्षत
आज भी दादी के मुख से 
उच्चरित श्लोक,स्तुति,आरती के साथ।
पार्श्व से जाती सड़क
इस घर से उस प्राचीन घर तक,
है जहां अब भी सुरक्षित
तोतली बोली तुम्हारी
लड़खड़ा चलना तुम्हारा
पहला कदम,पहली हंसी
और पहला शब्द भी,
घुटनों से आंगन नाप लेना,
धूल-मिट्टी से सने
बचपन की सब यादें तुम्हारी।  
और हाँ!
'राप्ती' का तीर भी,
और 'राप्ती' का नीर भी।
कल-कल स्वरों में,
पुलक-हर्षित
गीत गा-गाकर तुम्हें,
इस जन्मदिन की-
दे रहा शुभकामना।
--राघवेंद्र शुक्ल


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