Sunday 1 January 2017

अमरबेल बनना जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है..

‘हैप्पी न्यू इयर’ की शुभकामनाओं की बौछारों के बीच 21वीं सदी के 17 वें वर्ष का पहला दिन बीत गया।यानी कि 2017 भी अब एक दिन पुराना हो गया।हर साल नववर्ष हमें एक नयी शुरुआत करने के लिए एक लकीर खींचकर देता है,जहां से हम नयी ऊर्जा,नये संकल्प,नये विचार,नये तौर तरीकों के साथ जीवन यात्रा को सार्थक गति प्रदान करने की कोशिश करते हैं।पुराने साल को नम विदाई देकर हम कुछ रिजाल्यूशंस की लिस्ट बनाने बैठ जाते हैं जिनकी जमीन पर हमें नये साल को सफल,सार्थक और दिलचस्प बनाने का विश्वास होता है।पुरानी बुरी आदतों का संहार करने तथा नयी अच्छी आदतों का स्वयं में सृजन करने के संकल्पों का पर्व भी यही होता है।कुछ लोगों के संकल्प कुछ दिनों या घंटों की यात्रा करके ही धराशायी हो जाते हैं तो कुछ लोगों के दृढ़ निश्चयों की लिस्ट में से कुछ एक सरकारी योजनाओं के लिए केंद्र से ग्राम पंचायत को भेजे गए फंड की तरह साल के अंत तक अनुपालित हो ही जाते हैं।ऐसे लोग बधाई के पात्र होते हैं।

इस बार हम भी सोच रहे हैं कि थोड़े तो नए हो ही जाएं।वही बीस साल पुराना आचरण,व्यवहार,आदत जो भी कह लें,साल के अलावा सब कुछ पुराना ही तो है।अब नए राघवेंद्र शुक्ल की तलाश में हैं हम।एक नहीं अनेकों कमियां हैं हममें।सबका एक साथ तख्तापलट करना आसान नहीं है।बस थोड़ी अच्छी आदतें बहुमत में रहें,इतनी कोशिश करनी है।आखिर स्वस्थ लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का होना भी तो बहुत जरुरी है।इसलिए सोच लिया है,बदलेंगे,मगर इस साल सिर्फ एक आदत।वो आदत,जिसे इस समय बदला जाना सबसे ज्यादा जरूरी है।वो आदत,जो उन्नति के आशाओं पर एक घाव की तरह सड़ रही है।वो आदत,जिसकी वजह से मेरा सारा का सारा व्यक्तित्व एक तालाब की तरह शांत,स्थिर और निष्प्रभावी होता जा रहा है।आपके व्यक्तित्व के निर्माण के दौर का वातावरण आपके भविष्य की बुनियाद खड़ी करता है।

अगर यह बुनियाद कमजोर निकली तो आत्मविश्वास की छत के कभी भी भरभराकर ढहने का खतरा रहता है।मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ लगता है।सामने वाले को अपने से अधिक जिम्मेदार और योग्य समझने की आदत के अंधेरे में या फिर यूं कहें कि एक अनावश्यक स्वअनुशासन की छाया में उगा हुआ मेरा व्यक्तित्व कभी अपने आप से मुलाकात नहीं कर पाया,अपनी अहमियत नहीं समझी,अपनी कीमत नहीं जानी।

कहते हैं न! ‘बरगद के वृक्ष के नीचे कोई पौध उन्नत नहीं हो सकती।पौध को वृक्ष बनने के लिए आवश्यक है कि वह खुले आकाश में वातावरण के संघर्षों से आंख मिलाए,मौसम के दांव-पेंचों से दो-दो हाथ करे,धूप सहे,आंधियों का मुकाबला करे,बरसात में भीगे,सूरज से रोशनी मांगे,धरती से पानी और लवण खींचे,हवा से कार्बन डाई आक्साइड सोखे और प्रकृति में अपना अस्तित्व कायम रखने के हर तौर-तरीके अनुभव की किताब से सीखे।अमरबेल बनना जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है,और अमरबेल न बनने के लिए अंगारों की सैर करनी पड़ती है,जिम्मेदारियां उठानी पड़ती है,स्वतंत्र होना पड़ता है,निर्णय लेने पड़ते हैं,ठोकरें खानी पड़ती है,गिरना पड़ता है,उठना पड़ता है,सवाल उठते हैं,आलोचना होती है,हंसी उड़ती है,इन सबको सहन करना पड़ता है,और दृष्टि!....दृष्टि सदैव अंतरमन के गलियों में रखनी पड़ती है,जहां से निकलने वाले फरमान आपके अपने असली चरित्र और व्यक्तित्व का चित्र बनाते हैं।

अब तय तो कर लिया है कि अमरबेल नहीं बनना है।ये साल इसी युद्ध को समर्पित रहेगा।नए कैलेंडर का बदलता चेहरा मुझमें नए परिवर्तनों का साक्षी होगा,ऐसी इच्छा है,आशा है,विश्वास है और जरुरत भी।

नया साल वाकई नया हो,सुखमय हो,कीर्तिमय हो,समृद्धिमय हो और एक और बेहतरीन नया साल देने का आधार हो..

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